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बीकानेर के व्याख्यान ]
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करने के कारण तुम्हीं शङ्कर हो, मोक्षमार्ग की विधि का विधान करने के कारण तुम्हीं विधाता हो, और स्पष्ट है कि तुम्हीं पुरुषोत्तम हो ।
आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है
यन्त्र तन्त्र समये यथा तथा योऽसि सोऽस्यमिधया यया तथा, पीतदोष कलुषः स चेद् भवान् एक एव मगवन् ! तमोऽस्तुते || अर्थात् - किसी भी परम्परा में, किसी भी रूप में. किसी भी नाम से आप हों. अगर आप वीतराग हैं तो सभी जगह एक ही हैं । आपके। मेरा नमस्कार हो ।
इन उद्धरणों से ज्ञात होता है कि महापुरुष या वीतराग पुरुष का नाम पूज्य नहीं है । नाम उसका कुछ भी रख दिया जाय, अगर उसमें वीतरागता है तो वह पूज्य है ।
भगवान् महावीर स्वामी अंतिम तीर्थंकर थे । आज उन्हीं का शासन चल रहा है । सुधर्मा स्वामी ने भगवान् महावीर से जो कुछ सुना, वही उन्होंने जम्बूस्वामी से कहा । उसी वाणी के द्वारा आप और हम अपना कल्याण कर सकते हैं।
वीरः सर्वसुरासुरेन्द्र महितो, वीरं बुधा संश्रिताः ! वीरेणाभिहतः स्वकर्मनिचयो, वीराय नित्यं नमः ॥ वीरातीर्थमिदं प्रवृत्तमखिलं, वीरस्य घोरं तपः ।
वीरे श्रीधतिकान्तिकीर्तिनिश्चयः, हे वीर ! मां पालय ॥
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अर्थात् - वीर भगवान् सुरेन्द्रों और असुरेन्द्रों द्वारा
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