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बीकानेर के व्याख्यान ]
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साथ ही दूसरे-दूसरे कारणों से भी आत्मशुद्धि के उपायों में अन्तर पड़ गया है। यहाँ तक कि कई लोग तो कर्मवध के उपायों को ही कर्मनाश का उपाय समझ लेते हैं । कुछ लोगों का कहना है कि पहले सब शास्त्रों का पारायण करो तभी धर्म की प्राप्ति होगी। मगर ऐसा करना शक्य नहीं है। संसार के विभिन्न धर्मों के प्रतिपादक विपुल ग्रंथसंग्रह को पढ़ लेना सरल काम नहीं है और सर्वसाधारण के लिए तो ऐसा करना असंभव है । कब तो संसार के शास्त्रों के सागर को पार किया जाय और कब, आत्मशुद्धि के लिए उद्योग किया जाय ? ऐसा करने में आत्मशोधन का मार्ग रुक जायगा-अशक्य बन जायगा। कदाचित् यह कहा जाय कि संसार के सब मतमतान्तरों का निचोड़ एक जगह करके पढ़ा जाय तो क्या हानि है ? मगर ऐसा होना भी सरल काम नहीं है।
अब प्रश्न हो सकता है कि अगर यह असंभव है तो किस उपाय से कर्मों का नाश करना चाहिए? इसका उत्तर संक्षेप में यह है
महाजमो येम गतः पन्थाः । अर्थात् जिस मार्ग पर महापुरुष चले हैं, जिस मार्ग का अवलंबन करके उन्होंने अपने कर्मों का क्षय किया है और प्रात्मशुद्धि की है. वही मार्ग तुम्हारे लिए भी कल्याणकारी हो सकता है।
महापुरुष विना निर्णय लिये शिसी मार्ग पर पैर नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com