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[जवाहर-किरणावली
वा
परम्परा कल्याणकर है, अतः मैं उनका अनुकरण कर रहा हूँ।
वास्तविक और गम्भीर दृष्टि से देखा जाय तो इस सूत्र के वर्णन करने का उद्देश्य बड़ा मार्मिक है। उसे पूरी तरह कह सकना वाणी की शक्ति से परे है।
संसार में पद बहुत हैं और वे एक-दूसरे से ऊँचे हैं । मगर अपनी आत्मा पर चढ़े हुए आवरणों को हटाकर आत्मा का स्वरूप पूर्ण रूप से शुद्ध बना लेने, विघ्नों को हटाने और आत्मा पर पूर्ण विजय प्राप्त करने से बढ़कर कोई पद नहीं है। प्रात्मा में अशुद्धता एवं विभाव परिणति उत्पन्न करने वाले कर्मों का अन्त करना मानव-जीवन की सर्वोच्च सिद्धि है। आपका और हमारा एक मात्र लक्ष्य यही है कि आत्मा को किसी प्रकार निर्विघ्न सुख की अवस्था में पहुँचा सकें। जब हमारा यही लक्ष्य है तो कर्मनाश के कार्य में मार्गदर्शक और कल्याण में सहायक बनने वाले जो महापुरुष हुए हैं, उनके पंथ को देखने से अपना कार्य सरल हो सकता है।
लक्ष्य तो सबका यही है कि आत्मा की अशुद्धता मिटाई जाय. आत्मा का अपना विशुद्ध स्वरूप प्रकट किया जाय, मगर उपाय लोगों ने न्यारे-न्यारे बतलाए हैं। सांसारिक जीवन की विचित्र परिस्थितियों ने और काल की भिन्नता ने भी भित्र-भिन्न उपायों की उत्पत्ति में भाग लिया है और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com