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[जवाहर-किरणावली
लिया और कहा-मैं तेरी शरण में हूँ ! अब तुझे नहीं छोडूंगा।
श्राय गयो प्राय गयो आय गयो रे, मेरे नाथन को नाथ यहाँ प्राय गयो रे, वह तो पाके मुझे है जगाय गयो रे,
मेरे नाथन को नाथ यह। प्राय गयो रे, विवेक को पाते ही अत्मा भगवान् महावीर के समीप आ गया।
जो तू प्रभु प्रभु सो तू है, है त कल्पना मेटो, शुध चैनन्य आनन्द विनयचंद, परमारथ पद भैंटो ।
आत्मा और परमात्मा एक हैं, दो नहीं। विवेक का हाथ पकड़ लेने से आत्मा की परमात्मा से भेंट होती है और फिर आत्मा स्वयं परमात्मा के रूप में प्रकट हो जाता है।
पत्थर की पुतली, कपड़े की पुन ली और शक्कर की पुतली. यह तीनों स्नान करने गई। पत्थर की पुतली पानी में डूब कर के भी वैसी ही बनी रही। कपड़े की पुतली पानी में भीगी तो सही पर धूप लगने पर फिर ज्यों की त्यों हो गई । शक्कर की पुतली पानी में डूबकर उसी में रह गई । इन तीन में से प्राप कैसे बनना चाहते हैं ? अर्जुन माली परमात्मा के दर्शन करने गया तो स्वयं परमात्मा बन गया।
आत्मा और परमात्मा के एक होने की पहिचान यह है। अर्जुन माली को भगवान् महावीर में मिल जाने के पश्चात् लोगों की थप्पड़ें खाने की इच्छा हुई । वह थप्पड़ें मारने वालों के पास विशेष रूप से जाने लगा। यही आत्मा-परमात्मा के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com