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बीकानेर के व्याख्यान ]
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नायम? सम? । अर्थात्-ऐसा होना संभव नहीं है । इतना करके भी पुत्र माता-पिता से उऋण नहीं हो सकता।
इसका आशय यह है कि वास्तव में माता-पिता के उपकार का बदला इतने से नहीं चुक सकता। कल्पना कीजिए, किसी आदमी पर करोड़ रुपयों का ऋण है। ऋण माँगने वाला ऋणी के घर गया। ऋणी ने उसका आदर-सत्कार किया और हाथ जोड़कर कहा-'मैं आपका ऋणी हूँ और ऋण को अवश्य चुकाऊँगा।' अब आप कहिए कि आदरसत्कार करने और हाथ जोड़ने से ही क्या ऋणी ऋणरहित हो सकता है ?
'नहीं!'
एक राजा ने बाग तैयार कराया और किसी माली को सौंप दिया । माली ने वाग में से दस-वीस फल लाकर राजा को दे दिये, तो क्या वह राजा के ऋण से मुक्त हो गया ?
'नहीं'
मित्रो ! इस शरीर रूपी बगीचे को माता-पिता ने बनाया है । उनके बनाये शरीर से ही उनकी सेवा की तो क्या विशेषता हो गई ? यह शरीर तो उन्हीं का था। फिर शरीर से सेवा करके पुत्र उनके उपकार से मुक्त किस प्रकार हो सकता है ?
एक माता ने अपने कलियुगी बेटे से कहा-मैंने तुझे जन्म Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com