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बीकानेर के व्याख्यान ]
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आखिर राजा संन्यासिनी को लेकर सोमदत्त के पास गया । सोमदत्त को उसकी स्त्री सौंपकर उसने कहा- मैंने आपकी अवज्ञा की है । मेरा यह अपराध है तो गुरुतर, फिर भी मैं आपसे क्षमा-याचना करता हूँ ।
सोमदेव ने कहा- जब यह मेरी है ही नहीं, तब इसमें मेरी अवज्ञा क्या हुई ?
इसे कहते हैं क्षमा ! ऐसी क्षमा के द्वारा भी अन्याय-अत्या चार का नाश किया जाता है । अन्याय-अत्याचार के समूल नाश का यह सर्वश्रेष्ठ तरीका है। इस तरीके से अन्यायी और अत्याचारी के हृदय का परिवर्त्तन हो जाना है । परन्तु ऐसी सभावना प्राप्त करने के लिए साधना चाहिए ।
सुदर्शन सेठ का सामना होते ही अर्जुन माली का यक्ष भाग खड़ा हुआ । अर्जुन माली स्वस्थ हो गया। उसने सुदर्शन सेठ को धन्यवाद दिया और कहा- मैं आपका भक्त हूँ, लेकिन आप जिसके भक्त हैं वह महापुरुष कैसे होंगे !
मित्रो ! भगवान् की परीक्षा कभी-कभी भक्त से होती है । भक्त ऐसा होना चाहिए जैमा सुदर्शन मेठ था। सुदर्शन सेठ उस समय बिलकुल महादेव की प्रतिमा वन गये थे । जो आत्मा को ही परमात्मा मानकर उसमें तन्मय हो जाता है, उसकी शक्ति अद्भुत, अपूर्व और अलौकिक हो जाती है ।
यक्ष के श्रावेश से मुक्त होकर अर्जुन माली ने सुदर्शन से कहा- में आपके इष्ट देव का दर्शन करना चाहता हूँ ।
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