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बीकानेर के व्याख्यान ]
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अगर पूर्ण संगम अंगीकार करने की शक्ति हो तो अंगीकार कर लेना ही उचित है । परन्तु इतनी शक्ति न होने की हालत में अगर गहने त्याग दिये तो भी दुःख तो नहीं होगा । कदाचित् कहा जाय कि घर में नंगे हाथ अच्छे नहीं लगते, ते यही कहना पड़ेगा कि ऐसा कहने वाले की दृष्टि दूषित है । गहनों में सुन्दरता देखने वाला आत्मा के सद्गुणों के सौंदर्य को देखने में अंधा हो जाता है । त्याग, संयम और सादगी में जो सुन्दरता है, पवित्रता है, सात्विकता है, वह भोगों में कहाँ ? मैं विधवा बहिनों को सम्मति देता हूँ कि वे घर वालों की ऐसी बातों की परवाह न करके गहनों को त्याग दें- अपने शरीर पर धारण न करें और सादगी के साथ रहें ।
बहिने ! तुम भी काली की तरह तपस्या करो। इस पर्दे ने तुम्हारे जीवन को तुच्छ बना दिया है। इसके बन्धन को दूर करके अपने कर्त्तव्य का विचार करो ।
भाइयों से भी मैं कहना चाहता हूँ कि अगर आप भगवान् महावीर की भक्ति करना चाहते हैं तो काली महासती की शरण लो । काली ने घोर तप करके सारे संसार को मार्ग दिखला दिया है कि सब के लिए तप का मार्ग खुला हुआ है । काली की तरह आप भी आयंबिल करें तो आपको गरीबों के भोजन का पता चले ।
काली महासती ने मैत्रीभावना की साधना के लिए महान् त्याग किया था | मैत्रीभावना की महिमा अगम अगोचर है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com