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[जवाहर-किरणावली
सका हूँ।
शास्त्रों में प्राचार्य और सेठ का भी उपकार बतलाया गया है । सेठ का अर्थ है-सहायता देने वाला । गिरी हुई अवस्था में जो सहायता करता है वह सेठ है और मनुष्य को उसका उपकार मानना चाहिए।
धर्माचार्य के उपकार के संबंध में शास्त्र में उल्लेख है कि गौतम स्वामी ने भगवान महावीर स्वामी से यह प्रश्न कियाप्रभो ! यदि धर्माचार्य के ऊपर आई हुई आपत्ति दूर कर दी जाय, उन्हें वन्दना की जाय, उनकी भोजन आदि द्वारा सहायता की जाय, तो ऐसा करने वाला धर्माचार्य के ऋण से मुक्त हो जाता है या नहीं ? तब भगवान ने उत्तर दियानहीं, ऐसा नहीं हो सकता।
मित्रो ! माता-पिता का संतान पर बड़ा ऋण है। इस ऋण को चुकाने के लिए धर्म के सहायक बनो। उन्होंने धर्म से तुम्हारी रक्षा की थी, इसलिए अपने धर्म का मूल्य समझकर धर्म के सहायक बनो।।
कहने का आशय यह है कि अपनी मैत्रीभावना का विश्वव्यापी प्रसार करने के लिए सर्वप्रथम माता-पिता के प्रति यह भावना लाओ। माता-पिता के बाद भाई के प्रति मैत्रीभाव आता है। भाई से मैत्रीभाव रखने के लिए गम का इतिहास देखो, जिन्होंने अपने अधिकार का राजमुकुट
अपने भाई प्रसपतापूर्वक सौंप दिया। यही नहीं, उन्होंने . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com