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बीकानेर के व्याख्यान ]
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भाई के प्रभाव को अक्षुण्ण रखने के लिए वनवास स्वीकार किया और दशरथ को समझाया कि आप दुविधा में न पड़ कर भरत को राज्य दे दीजिए । आपके लिए राम और भरत भिन्न-भिन्न नहीं होने चाहिए । जो कुछ क्लेश है वह मेरे तेरे के मेदभाव में ही है। मैं माता कैकेयी के हृदय में घुसे हुए भेदभाव को जड़ से उखाड़ना चाहता हूँ। जैसे दाहिनी और बांई आँख में भेद नहीं किया जाता, इसी प्रकार मुझ में और भरत में भी भेद नहीं होना चाहिए। भरत का राज्य करना मेरा राज्य करना है। भरत राजा होंगे तो मैं राजा होऊंगा। और में राजा बगा नो भरत राजा होंगे।
आज भाई-भाई मुकद बाज़ी में पड़कर हजारों-लाखों रुपया नष्ट कर डालते हैं। सुनते हैं, एक गोदी के मुकदमे में सत्तरह लाख रुपया पूरे हो गये हैं ! ऐसे लोग मैत्रीभावना की आराधना किस प्रकार कर सकते हैं ? जो अपने सगे बन्धु को वैरी समझता है वह विश्ववन्धुता का पाठ कैसे सीख सकता है ?
भाई के बाद पुत्र, पुत्री आदि परिवार के साथ मैत्रीभावना स्थापित होती है। सारे परिवार पर समान स्नेह रखना पारिवारिक मैत्री भावना है। यह मेरा लड़का है, यह मेरे भाई का लड़का है, इस तरह का पक्षपात करना जघन्य मनोवृत्ति है। जिसकी भावना इतनी जघन्य और संकीर्ण होगी यह विश्वमैत्री के विशालतर प्रांगण में पैर नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com