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बीकानेर के व्याख्यान ]
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एक भाई ने मेरे शरीर पर खादी देखकर कहा'पूज्यजी के शरीर पर खाड़ी !' उसे शायद यह सोचकर आश्चर्य हुआ कि इतने धनिक समाज का आचार्य होकर मैं खादी क्यों पहनें ? मगर उस भोले भाई का पता नहीं कि खादी का कितना महत्त्व है ? महावीरचरित्र के अंत में, उसके रचयिता हेमचन्द्राचार्य का जीवनचरित दिया गया है । उसमें लिखा है कि श्राचार्य हेमचन्द्र एक बार अजमेर से पुष्कर गये थे । वहाँ एक श्राविका ने अपने हाथ से सूत कात कर खादी बुनी थी । खादी तैयार हुई ही थी कि हेमचन्द्राचार्य गोचरी के लिए वहाँ पहुँचे । श्राविका ने बड़ी श्रद्धा-भक्ति के साथ आचार्य से खादी लेने की प्रार्थना की । हेमचन्द्राचार्य गुजरात के प्रसिद्ध राजा कुमारपाल के गुरु थे । आपके विचार से हेमचन्द्राचार्य को खादी लेनी चाहिए थी ? पर यह स्वांग तो आप लोगों को ही सूझता है; उन्हें नहीं सूझता था ।
हेमचन्द्राचार्य ने बड़े प्रेम से खादी का वस्त्र स्वीकार किया । उसे पहिन कर विहार करते-करते वे सिद्धपुर पाटन गये, जहाँ राजा कुमारपाल रहता था । राजा अपने साथियों के साथ उनका स्वागत करने आया । वन्दन-नमस्कार आदि करके कुमारपाल ने कहा- 'गुरुदेव, कुमारपाल के गुरु के शरीर पर यह खादी शोभा नहीं देती ।'
हेमचन्द्राचार्य - मेरे खादी पहनने से तुम्हें लजा मालूम
होती है ?
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