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बीकानेर के व्याख्यान
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दया धर्म मावे तो कोई पुण्यवंत पावे, जॉने दया की बात सुहावेगी। भारी कर्मा अनन्त संसारी,
जॉने दया दाय नहिं श्रावे जी ।। विचार करो कि पुण्यवान कौन है ? मिष्टान्न भोजन करने वाला और अपने भोजन के लिए अनेकों को कष्ट में डालने वाला पुण्यवान् है या सादा भोजन करके दूसरों पर दया करने वाला पुण्यवान् है ? सुनते हैं भारतीयों की औसत आमदनी डेढ़ आना प्रतिदिन है। इसे देखते हुए अगर प्रत्येक आदमी डेढ़ आने में अपना निर्वाह करे तब तो सब को भोजन मिल सकता है, लेकिन आप कितने आने प्रतिदिन खर्च करते है ?
आपका काम तीन आने, छह आने या बारह आने में भी चल जाता है ? __ 'नहीं!'
अगर कोई चलाना चाहे तो चल क्यों नहीं सकता ? हाँ इतने व्यय में वह मौज-शौक नहीं होगी. जो अभी आप कर रहे हैं। जब प्रति मनुष्य डेढ़ आने की दैनिक आय है नो तीन पाना खर्च करने वाला एक आदमी को, छह प्राना खर्च करने वाला तीन आदमी को और बारह आना खर्च करने वाला सात आदमियों को भूखा रखता है ! इससे स्पष्ट है कि अमीर लोग ज्यों-ज्यों अधिक मौज करते हैं, त्यों-त्यों गरीब ज्यादा तादाद में भूखे मरते हैं। एक लम्बीShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com