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वीकानेर के व्याख्यान ]
हो जाएगी ! स्वार्थपरता की हद हो गई ! धर्म के नाम पर यह जो शिक्षा दी गई है और दी जा रही है, उससे धर्म को कितना आघात पहुँच रहा है, यह समझने की चिन्ता किसे है ? इससे लोग धर्म के प्रति घृणा करने लगते हैं और कहते हैं कि धर्म अगर इतनी निर्दयता, कठोरता, स्वार्थपरायणता और अमानुषिकता की शिक्षा देता है, तो धर्म का ध्वंल हो जाना ही जगत् के लिए श्रेयस्कार है ! भाइयो, जरा उदारतापूर्वक विचार करो । धर्म के मौलिक तत्त्व को व्यापक दृष्टि से देखो। द्वेष से प्रेरित होकर हम यह नहीं कह रहे हैं, परन्तु धर्म के प्रति फैलती हुई घृणा का विचार करके और साथ ही लोगों में आई हुई अनुदारता का ख्याल करके, कह रहे हैं । यह धर्म नहीं है । धर्म के नाम पर अधर्म फैलेगा तो धर्म वदनाम होगा। अधर्म फैलाने वालों का भी हित नहीं होगा । अतएव निष्पक्ष दृष्टि से धर्म के स्वरूप पर विचार करो । धर्म ही पापों का नाश करने वाला है । अगर धर्म के ही नाम पर पाप किया जाएगा और उसी को धर्म समझ लिया जाएगा तो पापों का नाश किस प्रकार होगा ?
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आपने अपने संबंधियों को अनेक बार भोजन कराया होगा, पर याद आता है कि किसी दिन किसी गरीब को स्नेही संबंधियों की तरह जिमाया हो ?
'नहीं !'
लेकिन पुराय किधर होता है ? अपनी श्रीमंताई दिखाने
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