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[ जवाहर-किरणावली
प्रतिनिधि होता है। वह समाज की स्थिति का शाब्दिक चित्रण करता है । अतएव उसके कथन को समाज का चित्र समझना चाहिए । इस दृष्टि से मराठी कवि का उपर्युक्त कथन सारे समाज का चित्रण है-सम्पूर्ण समाज के पाप का दिग्दर्शन है। आप अपने ऊपर इस कथन को घटाइए । अगर
आप पर वह घटित होता हो तो आप भी अपने दुष्कर्मों की .आलोचना कीजिए और उनसे बचने का दृढ़ संकल्प कीजिए ।
भूख के कारण जिसके प्राण निकल रहे हैं, उसे एक टुकड़ा मिल जाय तब भी उसके लिए बहुत है । मगर लोगों को उसकी ओर ध्यान देने की फुर्सत ही कहाँ ? अाजकल के लोगों में इतनी क्षुद्र, संकीर्ग और स्वार्थमय भावना घुसी हुई है, तिस पर भी धर्म के नाम पर इसी प्रकार का उपदेश मिल जाता है। बड़े खेद की बात है कि लोगों की यह धर्म सिखलाया जा रहा है कि- .
कोइ भेखधारी श्रावे द्वार जी, शर्मा शर्मी दीजे आहार जी। पछे कीजे पश्चाताप जी,
तो थोड़ो लागे पाप जी ॥ खेद ! धर्म के नाम पर कैसा हलाहल विष पिलाया जा रहा है । अगर द्वार पर आये हुए को लोकलाज के कारण भोजन दिया तो घोर पाप लग जाएगा !! अलवत्ता, भोजन देकर अगर पश्चात्ताप कर लिया जाय तो पाप में कुछ कमी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com