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बीकानेर के व्याख्यान]
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जिंदा रक्खा है !
माता ने सोचा-यह बिगडैल बेटा यों नहीं मानेगा। तब उसने कहा-अच्छा चल, हम लोग गुरुजी से इसका फैसला करा लें । अगर गुरुजी कहेंगे कि पुत्र पर माता-पिता का उप. कार नहीं है तो मैं अब से कुछ भी नहीं कहूँगी । मैं माता हूँ। मेरा उपकार मान या न मान. में तेरी सेवा से मुँह नहीं मोड़ सकूँगी। __माता की बात सुनकर लड़ने ने सोचा-शास्त्र वेत्ता तो कहते ही हैं कि मनुष्य कर्म से जन्म लेता है और पुण्य से पलता है। इसके अतिरिक्त गुरुजी माता-पिता की सेवा करने को एकान्त पाप भी कहते हैं । फिर चलने में हज़ ही क्या है?
यह सोच कर लड़के ने गुरुजी से फैसला करवाना स्वीकार किया। वह गुरुजी के पास चला गया । परन्तु माता के गुरु दूसरे ही थे। वे उन गुरु कहलाने वालों में नहीं थे जो माता-पिता की सेवा करना एकान्त पाप बतलाते हैं। दोनों माता-पुत्र गुरुजी के पास पहुँचे । वहाँ माता ने पूछा-'महाराज. शास्त्र में कहीं माता-पिता के उपकार का भी हिसाब बतलाया है या नहीं?' गुरु ने कहा-जिसमें माता-पिता के उपकार का वर्णन न हो वह शास्त्र ही नहीं । वेद में माना - पिता के संबंध में कहा
मातृदेवो भव, पितृदेवो भव । ठाणांगसूत्र में भी ऐसी ही बात कही गई है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com