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[ जवाहर-किरणावली
अगर आज नवीन आयु का बंध हो जाय तो आत्मा निहाल हो जायगा । मित्रो! आज प्राणी मात्र के प्रति मित्रभावना कायम करे और हृदय में किसी भी प्रकार का विकार मत रहने दो । जीवनमात्र के प्रति प्रेम के ऐसे प्रबल संस्कार बाँधो कि वे टूट न सकें। अगर आपके इस संस्कार में सचाई खाभाविकता और दृढ़ता हुई तो आपके जीवन में परिवर्तन हुर बिना नहीं रहेगा और आप प्रागीमात्र के मित्र होंगे तथा प्रागीभात्र आपके मित्र होंगे। इस स्थिति को प्राप्त कर लेने पर आप अपूर्व समता, निराकुलता और तृप्ति का अनुभव करने लगेंगे। ___ यह पवित्र दिन पुराने पापों को धोने और नये पाप न करने के दृढ़ संकल्प का दिन है। नये पाप न करने के संकल्प का अर्थ यह मत समझिये कि मैं सब को साधु बन जाने के लिए कह रहा हूँ। मेरा आशय यह है कि लोभ के कारण सांसारिक कामों में भी धर्म संबंधी जो त्रुटियाँ रहती हों, उन्हें दूर करने का संकल्प कीजिए और भविष्य में वह त्रुटियाँ मत रहने दीजिए। अपवित्रता को पूर करके आत्मा को पवित्रता के सरोवर में स्नान कराइए । बहुत-से लोगों की धारणा है कि धर्मोपदेश सुन लेने से ही आत्मा पवित्र हो जाएगा । पर इस भ्रम को आज दूर कर देना चाहिए । धर्मोपदेश के श्रवण का फल यह है कि आपके अन्तःकरण में तत्त्व का शान
जागृत हो। उस तत्वज्ञान के प्रकाश में आप हिताहित का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com