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वीकानेर के व्याख्यान ]
सेठानियाँ. सेठानियों को तो बहिन बनाती हैं, मगर किसी दिन किमी गरीविनी को भी बहिन बनाया है ?
काली और सुकाली के हृदय में अपना कल्याण करने की भावना उत्पन्न हुई। तब वे कहने लगीं-'यह राजमहल प्रात्मा के लिए कारागार हैं और यह बहुमूल आभरण हथकड़ियाँबेड़ियाँ हैं । इनके सेवन से प्रात्मा अशक्त बनता है. गुलाम बनता है। ऊपरी सजावट के फेर में पड़कर हम आन्तरिक सौन्दर्य को भूल जाते हैं। स्वाभाविकता की और अर्थात् अात्मा के असली स्वरूप की और हमारी दृष्टि ही नहीं पहुँच पाती । संसार के भोगापभोग और सुख के साधन असलियत को भुलाने वाले हैं। यह इतने सारहीन हैं कि अनादि काल से अब तक भोगने पर भी प्रात्मा इनसे तृप्त नहीं हो पाया। अनन्त काल तक भोगने पर भी भविष्य में तृप्ति होने की संभावना नहीं है । अलवत्ता, इन्हें भोगने के देड-स्वरूप नरक और नियंच गतियों के घोर कष्ट सहन करने पड़ते हैं । इन भोगविलासां के चक्कर में पड़ने वाला स्वार्थी बन जाता है। वह अपनी ही सुख-सुविधा का विचार करता है और अपने दीन-दुखी पड़ोसी की तरफ नज़र भी नहीं डालता।'
रानियों कहती हैं-'जिन गरीबों की बदौलत हम राजरानी कहलाती हैं, उन्हीं गरीबों को हमने भुला रक्खा है ! यही नहीं, वरन् एक प्रकार से उनके प्रति वैर-विरोध कर रक्खा है । राजमहल में रह कर हम उन बहिनों से नहीं मिल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com