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[ जवाहर-किरणावली
किसी की चमड़ी जाती हो, पर आप पतले कपड़े नहीं छोड़ सकते । अगर आप इतना-सा भी त्याग नहीं कर सकते तो राजसी वैभव और राजसी भोगों का त्याग करने वाले संतों और एसी ही सतियों का चरित सुनकर क्या लाभ उठाएँगे? क्या आपको उन त्यागभूत्ति महासतियों का स्मरण भी प्राता है ?
महासेन कृष्णा विदुसेन कृष्णा, राम कृष्णा शुद्धमेवजी । नित-नित बदू रे समणी,
त्रिकरण-शुद्ध त्रिकालजी, कवि ने यह वंदना किस काली को की है ? और आप यह बंदना किस काली को कर रहे हैं ? भारत की इन महाशनियों को भगवान् ने किस भाव से शास्त्र में स्थान दिया है ?
आप इन मतियों को किस प्रकार वंदना कर सकते हैं ? सांसारिक भोगों के प्रति हृदय में जब तक तिरस्कार की भावना उत्पन्न न हो जाय तब तक मनुष्य इन्हें वन्दना करने का सचा अधिकारी किस प्रकार हो सकता है ? हम किसी के कहने से या भावावेश में आकर उन सतियों के नाम पर चाहे मस्तक झुका लें, किन्तु वास्तव में उन्हें वन्दना करने योग्य तभी समझे जाएँगे, जब उनके त्याग को पहिचानेंगे। उनके त्याग को पहचान कर वंदना करने पर आपके पाप जलकर भस्म हो जाएँगे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com