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[जवाहरकिरणावली
_ 'आंबिल' प्राकृत भाषा का शब्द है। संस्कृत में इसे 'आचाम्ल' व्रत कहते हैं । इस व्रत का अनुष्ठान करने वाला सरस भोजन का त्याग करके नीरस और नमकहीन रूखासूखा भोजन करता है । पके हुए चावलों को पानी से धोकर उन्हें स्वादहीन बना कर दिन भर में एक बार खा लेना और फिर दूसरे दिन उपवास करना, यह महासती काली का तप था।
मित्रो ! आपके यहाँ ऐसी शक्तियाँ भरी पड़ी हैं। फिर भी न मालूम क्यों आप में बल नहीं आता ! आप मेरी दी हुई मात्रा का सेवन करो। चाहे यह कटुक हो पर इससे रोग का अवश्य ही विनाश होगा, इस में संदेह नहीं । ____ काली महासती अपने समस्त स्वर्गापम सुखों को तिलांजालि देकर यह घोर तपस्या किस उद्देश्य से कर रही थीं ?
'कर्मक्षय करने के लिए !'
यह उत्तर है तो ठीक, परन्तु अाप पूरी तरह नहीं कह सकते । इस कारण इतनी-सी बात कह कर समाप्त कर देते हैं। कर्म का अर्थ दुष्कर्म समझना चाहिए । काली महासती विचारती हैं-मैंने उत्तम से उत्तम भोजन खाया और इसी कारण अनेक गरीबों को दुत्कारा, मुसीबत में डाला और अधिक गरीब बनाया है। यही मेरा दुष्कर्म है । इसका बदला चुकाने में लिए ही उन्होंने बढ़िया कपड़ों का और उत्तम भोजन का त्याग करके सादे कपड़े पहने और नीरस भोजन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com