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बीकानेर के व्याख्यान ]
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बड़ी दीवाल खड़ी है. उसे में गिरा दूंगी । में सारे भारत को जगाना चाहती हूँ और भेदभाव की काल्पनिक दीवालों को धूल में मिला देना चाहती हूँ । यह विचार कर महारानी काली ने उत्तम वस्त्र उतार कर सादे वस्त्र धारण किये, इन्द्रानी सरीखा मनोहर श्रृंगार हटा दिया और जिस केशराशि को बड़े चाव से सजाया करती थी और सुगंधित तेल-फुलेल से नहलाया करती थी, उसी केशराशि कोनाँच कर फेंक दिया। उन्होंने स्वदेश की बनी सादी खादी से अपना शरीर सजा लिया। महारानी काली ने साध्वी होकर सफेद वस्त्र धारण किये।
आज अगर कोई विधवा बाई भी सफेद वस्त्र धारण कर लेती है तो होहल्ला मच जाता है । काली रानी का वह तेज आज बहिनों में नहीं रहा । न जाने कब और कैसे गायब हो गया है ?
आखिर काली गनी ने संसार त्याग दिया । संसारत्याग कर उन्होंने जो अवस्था अपनाई, वह वर्णनातीत है । महाकृपा काली नामक सनी ने प्रांबिल तपस्या करना प्रारंभ किया। चौदह वर्ष, तीन माम और वीस दिनों तक प्रांबिल तप करके उन्होंने अपनी कोमल और कान्त काया को झुलसा डाला । एक उपवास और उसके बाद आंबिल, फिर उपवास और दूसरे दिन फिर आंबिल, इस प्रकार उनकी तपस्या निरन्तर जारी रही।
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