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[ जवाहर-किरणावली
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है, वह अत्यन्त गंभीर है और जैनधर्म की कथाओं पर शिखर के समान है। यह दसे महारानियाँ वैभव और भोगों में डूबी हुई थीं। संसार के सर्वश्रेष्ठ भोग उन्हें सुलभ थे । कभी किसी वस्तु का अभाव उन्होंने जाना ही नहीं था । लेकिन भगवान महावीर के प्रताप से उन्हेंोंने समस्त भोगों का परित्याग कर दिया । वे साध्वियाँ हो गई और आध्यात्मिक साधना में लीन रहने लगीं । भिक्षा द्वारा अपना शरीर निर्वाह करने लगी। इनमें से भी कृष्णा महारानी के चरित का स्मरण करके तो रोमांच हो पाता है । कहाँ राजसी वैभव और कहाँ दुष्कर तप ! कहाँ उनकी फूल-सी कोमल काया और कहाँ पद-पद पर परिषहों का सहन करना ! कैसी अनोखी उत्क्रांति का संदेश है ! ____ मैं धर्मशास्त्र सुना रहा हूँ, इतिहास नहीं सुना रहा हूँ। जिसके हृदय में भक्ति है वह तो धर्मशास्त्र की कथा को ऊँची समझेगा ही, परन्तु लोकदृष्टि से देखने वाला भी इतना अवश्य कहेगा कि राजरानी साध्वी बने-स्वेच्छा से भिचुणी के जीवन को अंगीकार करे, यह कल्पना ही कितनी उच्च है ! जिस मस्तिष्क ने यह कल्पना की है वह क्या साधारण नहीं होगा ?
जैनधर्म और बौद्धधर्म की कथाओं से विदित होता है कि भारतवर्ष में अनेक राजरानियाँ साध्वी बनी हैं । महाराजा अशोक की बहिन भी भिक्षुणीसंघ में प्रविष्ट हुई थी। सुना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com