________________
बीकानेर के व्याख्यान ]
[ ४१
निर्णय करें और अहित के मार्ग को त्याग कर हित के मार्ग पर चलें । विना क्रिया के श्रवण या ज्ञान पूर्ण लाभप्रद हो सकता । आप धर्म का जो उपदेश सुनते हैं से सिर्फ सुनने के लिए ही न सुनें बल्कि उसे यथाशक्ति अमल में लावें । धर्म मुख्य रूप से आचरण करने की वस्तु है । अतएव आप जो धर्मोपदेश सुनते हैं, उसका आचरण कीजिए ।
अन्तगडसूत्र में जो आदर्श बतलाये गये हैं, उनका पालन वीर क्षत्रिय ही कर सकते हैं । आप लोग भी क्षत्रिय ही हैं, मगर बनिया बन रहे हैं। आपको बनिया नहीं बनाया गया था, महाजन बनाया गया था । परन्तु आज आपकी वीरता और धीरता कहाँ गई ? आज आपको जब बनिया कहा जाता है तब भी आपका क्षत्रियत्व जोश नहीं खाता ? पूर्वकालीन वीरता जागृत करने के लिए आपको अन्तगडसूत्र सुनाया गया है। जिनकी कथा आपने सुनी है और मैंने सुनाई है, उन्होंने प्रवल पुरुषार्थ करके अपनी सम्पूर्ण अशुद्धता हटा दी
और अनन्त मंगल प्राप्त किया । अभी आपके और हमारे कर्मों का नाश होना शेष है । हमें अपनी तमाम आत्मिक विकृतियों को दूर करना है । इस महान उद्देश्य को सफल करने के लिए हमें आदर्श महापुरुषों के पथ का अनुसरण करना चाहिए । उस पथ को समझने के लिए ही कथानों का कथन और श्रवण किया जाता है।
अन्तगडसूत्र में, अन्त में दस महारानियों की जो कथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com