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[ जवाहर-किरणावली
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त्याग का अर्थ यदि आप संसार छोड़कर साधु बनना समझें तो वह गलत अर्थ नहीं होगा ! परन्तु यहाँ इतना समझ लेना आवश्यक है कि कस्तूरी किसी के घर हजार मन हो और किसी के घर एक कन हो तो चिन्ता नहीं, पर चाहिए सच्ची कस्तूरी । एक तोला रेडियम धातु का मूल्य साढ़े चार करोड़ रुपया सुना जाता है । उसके एक कण से भी बहुत-सा काम निकल सकता है, पर शर्त यही है कि वह नकली नहीं, असली हो । इसी प्रकार पूर्ण शांति प्राप्त करने के लिए आप पूर्ण त्याग कर सकें तो अच्छा ही है। अगर पूर्ण त्याग करने की आपस में शक्ति नहीं है तो आंशिक त्याग तो करना ही चाहिए । मगर ध्यान रखना कि जो त्याग करो, वह सच्चा त्याग होना चाहिए । लोक-दिखावे का द्रव्यत्याग आत्मा के उत्थान में सहायक नहीं होगा । आत्मा के अन्तरतर से उद्भूत हे।ने वाली त्यागभावना ही आत्मा को ऊँचा उठाती है । त्याग भले ही शक्ति के अनुसार थोड़ा हो परन्तु असली है। और शुद्ध हो जो कि भगवान् शांतिनाथ को चढ़ सकता हो।
जिन देवों ने त्याग करके शांति नहीं प्राप्त की उन्होंने संसार को शांति नहीं सिखाई । महापुरुषों ने स्वयं त्याग करके फिर त्याग का उपदेश दिया है और सच्ची शांति सिखाई है। महापुरुष त्याग के इस अद्भुत रेडियम को यथा
शनि ग्रहण करने के लिए उपदेश देते हैं । अतएव अाप भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com