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बीकानेर के व्याख्यान ]
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भावना से उपवास करोगे तो धर्म का भी लाभ होगा। अगर
आपने स्वेच्छा से उपवास न किये तो प्रकृति दूसरी तरह से उपवास करने के लिए आपको बाध्य करेगी । ज्वर आदि होने पर भोजन त्यागना पड़ेगा।
भगवान शान्तिनाथ ने छह खंड का राज्य त्याग कर संसार को सिखाया है कि त्याग कैसे किया जाता है और त्याग में कितनी निराकुलता तथा शान्ति है । मगर तुम से
और कुछ नहीं बन पड़ता तो शान्तिनाथ भगवान के नाम पर क्रोध करने का ही त्याग कर दो । जहाँ क्रोध का अभाव है वहाँ ईश्वरीय शान्ति उपस्थित रहती है। पाप शान्ति चाहते हैं तो उसे पाने का कुछ उपाय भी करो । एक भक्त कहते हैं
कठिन कर्म लेहि जाहिं मोहि जहाँ
तहाँ-तहाँ जन छन............ प्रभो ! क्रूर कर्म न जाने कहाँ-कहाँ मुझे घसीट कर ले जाते हैं । इसलिए हे देव ! मैं आपसे यह याचना करता हूँ कि जब कर्म मुझे परायी स्त्री और पराये धन आदि की ओर ले जावें तब मैं आपको भूल न जाऊँ । आपकी दृष्टि मुझ पर उसी प्रकार बनी रहे जिस प्रकार मगर या कछुई की दृष्टि अपने अंडों पर उन्हें पालने के लिए बनी रहती है ।
गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मेरी माता जैनधर्मी सन्त की भक्त थी। विलायत जाते समय मेरी माता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com