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[ जवाहर - किरणावली
मुझे उन संत के पास ले गई। वहाँ उसने कहा- मेरा यह लड़का दारू, मांस और परस्त्री का त्याग करे तब तो मैं इसे विलायत जाने दे सकती हूँ, अन्यथा नहीं जाने दूँगी । गांधी जी माता की आज्ञा को पर्वत से भी उच्च मानते थे । इसलिए उन्होंने महात्मा के सामने मदिरा, मांस और परस्त्री का त्याग किया |
गांधीजी लिखते हैं कि उस त्याग के प्रभाव से वे कई बार भ्रष्ट है।ने से बचे । एक बार जब वे जहाज से सफ़र कर रहे थे, अपनी इस प्रतिज्ञा के कारण ही बच सके । गांधीजी जहाज से उतरे थे, कि उन्हें उनके एक मित्र मिल गए । उन मित्र ने दो-एक स्त्रियाँ रख छोड़ी थीं, जिन्हें जहाज से उतरने वाले लोगों के पास भेजकर उन्हें भ्रष्ट कराते और इस प्रकार अपनी आजीविका चलाते थे । उन मित्र ने पैसे कमाने के उद्देश्य से तो नहीं पर मेरा आतिथ्य करने के लिए एक स्त्री को मेरे यहाँ भी भेजा । वह स्त्री मेरे कमरे में आकर खड़ी रही । मैं उस समय ऐसा पागल सा हो गया, मानों मुझे बचाने के साक्षात् परत्मामा आा गये हों। वह कुछ देर खड़ी रही और फिर निराश होकर लौट गई। उसने मेरे मित्र को उलहना भी दिया कि तुमने मुझे किस पागल के पास भेज दिया ! उस बाई के चले जाने पर जब मेरा पागलपन दूर हुआ तब मैं बहुत प्रसन्न हुआ और परत्मामा को धन्य-वाद देने लगा कि - प्रभो ! तुम धन्य हो । तुम्हारी कृपा से
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