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बीकानेर के व्याख्यान.]
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मैं बच गया।
भक्त लोग कहते हैं-नाथ, तू इसी प्रकार मुझ पर दृष्टि रखकर मेरी रक्षा कर ।
गांधीजी ने एक घटना और लिखी है । वे जिस घर में रहते थे उस घर की स्त्री का पाचरण वेश्या सरीखा था । एक मित्र का उसके साथ अनुचित संबंध था। उन मित्र के प्राग्रह से में उस स्त्री के साथ ताश खेलने बैठा। खेलते खेलते नीयत बिगड़ने लगी । पर उन मित्र के मन में पाया कि मैं तो भ्रष्ट हूँ ही इन्हें क्यों भ्रष्ट होने दूं! इन्हेंोंने अपनी माता के सामने जो प्रतिज्ञा की है वह भंग हो जायगी । अाखिर उन्हेंोंने गांधीजी को वहाँ से उठा लिया । उस समय मुझे बुरा तो अवश्य लगा लेकिन विचार करने पर बाद में बहुत अानन्द हुआ।
मित्रो ! अपने त्याग की दृढ़ता के कारण ही गांधीजी दुष्कर्मों से बचे रहे और इसी कारण आज सारे संसार में उनकी प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा है । उन्होंने गुरु से त्याग की बानगी ही ली थी । उसका यह फल निकाला तो पूरे त्याग का कितना फल न होगा ? ग्राप पूरा त्याग कर सकें तो कीजिए । न कर सके तो त्याग की बानगी ही लीजिए । और फिर देखिए कि जीवन कितना पवित्र और प्रानन्दमय बनता है !
गांधीजी लिखते हैं कि मुझ पर आये हुए संकट टल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com