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बीकानेर के व्याख्यान ]
[ २६
ज्ञानी, ध्यानी और वीरों की यही आदत होती है कि वे अपनी शक्ति की खबर भी नहीं रखते। मैंने तुम्हें जो अलंकार दिये हैं उन्हें तुम मेरे लिए लौटा रही हो किन्तु पुरुष होने के कारण मैं उन्हें पहिन नहीं सकता । साथ ही मुझे खयाल अता है कि वह शक्ति न तुम्हारी है, न हमारी है । हमारी और तुम्हारी भावना पूरी करने वाले त्रिलोकीनाथ का ही यह प्रताप है । वह नाथ, जन्म धारण करके सारे संसार को सनाथ करेगा । आज के इस चमत्कार को देखते हुए, इन अलंकारों को गर्भस्थ प्रभु के लिए सुरक्षित रहने दो। जन्म होने पर इनका शांतिनाथ' नाम रक्खेंगे । 'शांतिनाथ' नाम एक सिद्ध मन्त्र होगा, जिसे सारा संसार जपेगा और शांतिलाभ करेगा । देवी, तुम कृतार्थ हो कि संसार को शांति देने वाले शांतिनाथ तुम्हारे पुत्र होंगे ।
रानी -- नाथ, आपने यथार्थ कहा । वास्तव में बात यही है । यह अपनी शक्ति नहीं, उसी की शक्ति है ! उसी का प्रताप है, जिसे मैंने गर्भ में धारण किया है । प्रार्थना में कहा गया है
अश्वसेन नृप अचला पट गनी,
तल सुत कुल सिंगार हो सुभागी । जन्मत शांति थई निज देश में,
मिरगी मार निवार हो सुभागी ॥
इस प्रकार शांतिनाथ भगवान् रूपी सूर्य के जन्म धारण
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