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24/जैन समाज का वृहद् इतिहास
मार्ग रखा गया। सारे देश में भगवान महावीर की स्मति स्वरूप धर्मयक रथ घुमाबा गया जिससे केन्द्र एवं प्रदेशों की निर्वाण समितियों को अच्छी राशि प्राप्त हुई तथा . जैन धर्म की प्रभावना हुई। महावीर परिनिर्वाण महोत्सव के सफल बनाने में पूज्य मुनि विद्यानन्द जी महाराज एवं साहू शान्ति प्रसाद जैन का योगदान विशेषतः उल्लेखनीय है। उस समय उन्होंने सारे समाज को एक सूत्र में संगठित होने में पूर्ण । सफलता प्राप्त की।
महान आत्माओं का स्वर्गारोहण :
वैसे तो इन 10 वर्षों में अनेक सन्तो, विद्वानों एवं श्रेष्ठियों का वरद हस्त समाज से उठ गया जिनके स्वर्गदास से समाज की गहरी क्षति हुई। आचार्य महावीरकीर्ति जैसे योगीराज के समाधिमरण से एक महान सन्त का अभाव हो गया। निर्वाण महोत्सव की पूर्व संध्या पर डॉ. नेमिचन्द जी शास्त्री जैसा विद्वान उठ गया। डॉ. हीरालाल जी जैसे उद्भट विद्वान चल बसे । यहीं नहीं जिनके निर्देशन में भगवान महावीर का 2500 वौँ परिनिर्वाण महोत्सव मनाया गया, ऐसे साहू शान्ति प्रसाद जी जैन का निधन सन् 1977 में हो गया। यही नहीं शिक्षा जगत की महान हस्ती बन्दाबाई जी जैन आरा भी चल बसी। इसके पूर्व अक्टूबर 1975 को प्राकृत भाषा के उद्भट विद्वान डॉ. ए. एन. उपाध्ये भी चल बसे जिससे साहित्यिक जगत की महान क्षति हुई। वर्धा के श्री चिरंजीलाल जी बड़जात्या जो राष्ट्रीय एवं सामाजिक क्षेत्र की महान हस्ती थी वह भी चल बसी। वीर सेवा मन्दिर के विद्वान एवं अपभ्रंश के खोजी विद्वान पं. परमानन्द जी भी इसी दशक में स्वर्गवासी हो गये।
शताब्दी का अन्तिम दशक (सन 1981 से 1990 तक):
20वीं शताब्दी के अन्तिम दशक के एक दशक पूर्व का इतिहास भगवान बाहुबली प्रतिष्ठापना सहस्राब्दि एवं महामस्तकाभिषेक महोत्सव से प्रारम्भ हुआ। कर्नाटक प्रान्त में श्रवणबेलगोला तीर्थ पर 21 फरवरी सन् 1981 को लाखो नर-नारियों के मध्य भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने महामस्तकाभिषेक समारोह का उद्घाटन किया तथा दिनांक 22 फरवरी को देश-विदेश से आये लाखों यात्रियों के समक्ष भगवान बाहुबलि का हर्ष ध्वनि एवं जयघोषों के मध्य 1008 जल कलशों से अभिषेक किया। इस अवसर पर 151 साधु-साध्वियों ने महामस्तकाभिषेक समारोह में पधार कर महोत्सव की गरिमा में चार चांद लगा दिये । आचार्य देशभूषण जी महाराज, आचार्य विमल सागर जी महाराज एवं मुनि श्री विद्यानन्द जी महाराज सहित एवं अन्य संघों के साधु-साध्वियों पधारी थी। इस अवसर पर अखिल भारतीय स्तर की संस्थाओं, दिगम्बर जैन महासभा, दिगम्बर जैन महासमिति के विशेष अधिवेशन हुये। समारोह में अनेक विद्वानों एवं श्रीमन्तो ने भाग लिया। इस अवसर पर दिगम्बर जैन मुनि परिषद की स्थापना का निर्णय लिया गया। कुछ प्रस्ताव भी पास किये गये। लेकिन इसके पश्चात् इस दिशा में कोई कार्य नहीं हो सका। भगवान बाहुबलि सहस्राब्दि महामस्तकाभिषेक समारोह के पश्चात् समाज में समन्वय, सौहार्द एवं एकता का वातावरण बनने लगा। श्रवणबेलगोला की पुण्य धरती पर आचार्यों एवं मुनियों ने एक मंच पर बैठकर कुछ नियम बनाये तथा एकल विहार एवं शिथिलाचार विरोध की भावना