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अध्याय १६ : परिवर्तन
साथ ही खर्च बिलकुल नहीं बढ़ेगा ।" यह बात मुझे पसंद हुई। पर परीक्षाके विषय देखकर मेरे कान खड़े हुए। लैटिन और एक दूसरी भाषा अनिवार्य थी । अब लैटिनकी तैयारी कैसे हो ? पर मित्रने सुझाया, "वकीलको लैटिनका बड़ा काम पड़ता है । लैटिन जाननेवालेको कानूनकी पुस्तकें समझने में सहूलियत होती है । फिर रोमन लॉकी परीक्षामें एक प्रश्न-पत्र तो केवल लैटिन भाषाका ही होता है, और लैटिन जान लेनेसे अंग्रेजी भाषापर ज्यादा अधिकार हो जाता है। इन बातोंका असर मेरे दिलपर हुआ । चाहे मुश्किल भले ही हो, पर लैटिन जरूर सीखना चाहिए। फ्रेंच जो शुरू की थी उसे भी पूरा करना चाहिए । अतः दूसरी भाषा फ्रेंच लेनेका निश्चय किया । एक खानगी मैट्रिक्युलेशन क्लास खुला था, उसमें भरती हुआ । परीक्षा हर छठे महीने होती । मुश्किलसे पांच महीने का समय मिला था। यह काम मेरे बूतेके बाहर था, किंतु परिणाम यह हुआ कि सभ्य बननेकी धुन में मैं अत्यन्त उद्यमी विद्यार्थी बन गया । टाइम-टेबल बनाया । एक-एक मिनट बचाया । परंतु मेरी बुद्धि और स्मरण शक्ति ऐसी न थी कि दूसरे विषयोंके उपरांत लैटिन और फ्रेंचको भी सम्हाल सकता । परीक्षा दी, पर लैटिन में फेल हुआ, इससे दुःख तो हुआ, पर हिम्मत न हारा । इधर लैटिनका स्वाद लग गया था । सोचा कि फ्रेंच ज्यादा अच्छी हो जायगी और विज्ञान में नया विषय ले लूंगा । रसायनशास्त्र, जिसमें में अब देखता हूं कि खूब मन लगना चाहिए, प्रयोगोंके अभाव में, मुझे अच्छा ही न लगा । देशमें यह विषय मेरे पाठ्यक्रममें रहा ही था । इसलिए लंदन - मैट्रिकके लिए भी पहली बार इसीको पसंद किया था। इस बार 'प्रकाश और उष्णता' (Light & Heat) को लिया । यह विषय आसान समझा जाता था और मुझे भी आसान ही मालूम हुआ ।
फिर परीक्षा देनेकी तैयारीके साथ ही रहन-सहन में और भी सादगी दाखिल करने की कोशिश की। मुझे लगा कि अभी मेरे जीवनमें इतनी सादगी नहीं आ गई है, जो मेरे खानदानकी गरीबीको शोभा दे । भाई साहबकी तंगदस्ती और उदारताका खयाल आते ही मुझे बड़ा दुःख होता । जो १५ पौंड और ८ पौंड प्रति मास खरचते थे उन्हें तो छात्रवृत्ति मिलती थी । मुझसे अधिक सादगी से रहनेवालोंको भी मैं देखता था । ऐसे गरीब विद्यार्थी काफी तादाद में मेरे संपर्क में आते थे । एक विद्यार्थी लंदन के गरीब मुहल्ले में प्रति सप्ताह दो शिलिंग देकर
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