________________
आत्म-कथा : भाग ५
यों ही नहीं पड़ा रहता। मुझ तो कपड़ा उत्पन्न करने में और तैयार कपडेको खपाने में लग जाना चाहिए। अभी तो मैं केवल उत्पत्तिके काममें ही लगा हया हूँ। मै इस तरहकी स्वदेशीमें विश्वास रखता हूं; क्योंकि उसके द्वारा भारतकी भूखों मरनेवाली आधी बेकार स्त्रियोंको काम दिलाया जा सकता है। वे जो सूत कातें उसे बुनवाना और इस तरह तैयार खादी लोगोंको पहनाना ही मेरा काम है और यही मेरा अांदोलन है। चरखा-प्रांदोलन कितना सफल होगा यह तो मैं नहीं कह सकता। अभी तो उसका श्रीगणेश-मात्र हुआ है । लेकिन मझे उसमें पूरा विश्वास है। चाहे जो हो, यह तो निर्विवाद है कि इस आंदोलन से कोई हानि नहीं होगी। इस आंदोलनके कारण हिंदुस्तानमें तैयार होनेवाले कपड़ेमें जितनी वृद्धि होगी, उतना लाभ ही होगा। इसलिए इस कोशिशमें आपका बतलाया हुआ दोष तो नहीं है ।"
“अगर आप इस तरह इस आंदोलनका संचालन करते हों तो मुझे कुछ भी कहना नहीं है । यह एक जुदी बात है कि इस यंत्रयुगमें चरखा टिकेगा या नहीं फिर भी, मैं तो आपकी सफलता ही चाहता हूं।"
असहयोगका प्रवाह इसके बाद खादीकी तरक्की किस तरह हुई, उसका वर्णन इन अध्यायोंमें नहीं किया जा सकता। यह बतला चुकने पर कि कौन-कौन चीज किस तरह जनताके सामने आई, उसके इतिहासमें उतरना इन अध्यायोंकी सीमाके बाहरकी बात है । ऐसा करनेसे तो उन-उन विषयोंकी ए क-एक पुस्तक ही अलग त यार हो जायगी। यहां मैं तो केवल यही बताना चाहता हूं कि सत्यकी शोध करते हुए किस तरह जुदी-जुदी बातें मेरे जीवनमें एक-के-बाद-एक अनायास आती गई। . इसलिए मैं मानता हूं कि अब असहयोगके बारेमें कुछ बातें बतानेका समय आ गया है। खिलाफतके बारेमें अली-भाइयों का जबरदस्त आंदोलन