________________
आत्म-कथा : भाग २
प्रति सप्ताह देना ठहरा।
मि० बेकर वकील और साथ ही कट्टर पादरी भी थे। अभी वह मौजूद हैं। अब तो सिर्फ पादरीका ही काम करते हैं । वकालत छोड़ दी है । खा-पीकर सुखी हैं। अबतक मुझसे चिट्ठी-पत्री करते रहते हैं । चिट्ठी-पत्रीका विषय एक ही होता है। ईसाई-धर्मकी उत्तमताकी चर्चा वह भिन्न-भिन्न रूपमें अपने पत्रोंमें किया करते हैं, और यह प्रतिपादन करते हैं कि ईसामसीहको ईश्वरका एकमात्र पुत्र तारनहार माने बिना परम शांति कभी नहीं मिल सकती ।
हमारी पहली ही मुलाकातमें मि० बेकरने धर्म-संबंधी मेरी मनोदशा जान ली। मैंने उनसे कहा-- " जन्मतः मैं हिंदू हूं; पर मुझे उस धर्मका विशेष ज्ञान नहीं। दूसरे धर्मोका ज्ञान भी कम है । मैं कहां हूं, मुझे क्या मानना चाहिए, यह सब नहीं जानता। अपने धर्मका गहरा अध्ययन करना चाहता हूं। दूसरे धर्मोंका भी यथाशक्ति अध्ययन करनेका विचार है ।"
यह सब सुनकर मि० बेकर प्रसन्न हुए और मुझसे कहा--"मैं खुद 'दक्षिण अकिका जनरल मिशन'का एक डाइरेक्टर हूं। मैंने अपने खर्चसे एक गिरजा बनाया है। उसमें मैं समय-समयपर धर्म-संबंधी व्याख्यान दिया करता हूं। मैं रंग-भेद नहीं मानता। मेरे साथ और लोग भी काम करनेवाले हैं। हमेशा एक बजे हम कुछ समयके लिए मिलते हैं और आत्माकी शांति तथा प्रकाश ( ज्ञानके उदय) के लिए प्रार्थना करते हैं। उसमें आप आया करेंगे तो मुझे खुशी होगी। वहां अपने साथियोंका भी परिचय आपसे कराऊंगा। वे सब आपसे मिलकर प्रसन्न होंगे, और मुझे विश्वास है कि आपको भी उनका समागम प्रिय होगा। आपको कुछ धर्म-पुस्तकें भी मैं पढ़ने के लिए दूगा। परंतु सच्ची पुस्तक तो बाइबिल ही है । मैं खास तौरपर सिफारिश करता हूं कि आप इसे पढ़।"
मैने मि० बेकरको धन्यवाद दिया और कहा कि जहांतक हो सकेगा आपके मंडलमें एक बजे प्रार्थनाके लिए आया करूंगा।
"तो कल एक बजे आप यहीं आइएगा, हम साथ ही प्रार्थना-मंदिर चलेंगे।"
और हम अपने-अपने स्थानोंको बिदा हुए। अधिक विचार करनेकी फुरसत मुझे न थी। मिस्टर जान्स्टनके पास गया। बिल चुकाया। नये घर गया और