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अध्याय २३ : गृह-व्यवस्था
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रखनी चाहिए । इस कारण अच्छे मुहल्लेमें बढ़िया घर लिया था । घरको सजाया भी अच्छी तरह था। खान-पान तो सादा था; परंतु अंग्रेज मित्रोंको भोजनके लिए बुलाया करता था और हिंदुस्तानी साथियोंको भी निमंत्रण दिया करता था, इसलिए आप ही खर्च और भी बढ़ गया था ।
नौकर की तंगी सभी जगह रहा करती । किसीको नौकर बनाकर रखना आजतक मैंने जाना ही नहीं ।
मेरे साथ एक साथी था । एक रसोइया भी रक्खा था । वह कुटुंबी ही बन गया था । दफ्तर के कारकुनोंमेंसे भी जो रक्खे जा सकते थे, उन्हें वरमें ही रक्खा था ।
मेरा विश्वास है कि यह प्रयोग ठीक सफल हुआ; परंतु मुझे संसारके कटु अनुभव भी काफी मिले ।
वह साथी बहुत होशियार और मेरी समझके अनुसार वफादार था; पर में उसे पहचान न सका । दफ्तर के एक कारकुनको मैंने घरमें रक्खा था । इस साथीको उसकी ईर्ष्या हुई । उसने ऐसा जाल रचा कि जिससे मैं कारकुनपर शक करने लगूं। यह कारकुन बड़ी आजाद तबीयत के थे । उन्होंने घर और दफ्तर दोनों छोड़ दिये । इससे मुझे दुःख हुआ । उनके साथ कहीं अन्याय न हुना हो, यह खयाल भीतर-ही-भीतर मुझे नोच रहा था ।
इसी बीच मेरे रसोइयेको किसी कारणसे दूसरी जगह जाना पड़ा । मैंने उसे अपने मित्रकी सेवा सुश्रूषाके लिए रक्खा था, इसलिए उसकी जगह दूसरा रसोइया लाया गया । बादको मैंने देखा कि वह शख्स उड़ती चिड़िया भांपनेवाला था; पर वह मुझे इस तरह उपयोगी हो गया, मानो मुझे उसकी जरूरत रही हो । इस रसोइयेको रक्खे मुश्किल से दो-तीन ही दिन हुए होंगे कि इतनेमें उसने मेरे घरकी एक भयंकर बुराईको ताड़ लिया, जो मेरे ध्यानमें न आई थी, और उसने मुझे सचेत करनेका निश्चय किया । में विश्वासशील और अपेक्षाकृत भला आदमी हूं, यह धारणा लोगोंको हो रही थी, इस कारण रसोइयेको मेरे ही घरमें फैली गंदगी भयानक मालूम हुई ।
मैं दोपहर के भोजनके लिए दफ्तरसे एक बजे घर जाता था । कोई बारह बजे होंगे कि वह रसोइया हांफता हुआ दौड़ा आया और मुझसे कहा-