________________
४७१
कमिश्नरसे मैंने जो कुछ देखा था उसका वर्णन किया । उसने संक्षेप में जवाब दिया-- “ जलूसको हम फोर्टकी और जाने देना नहीं चाहते थे । वहां जलूस जाता तो उपद्रव हुए बिना नहीं रह सकता था । और मैंने देखा कि लोग केवल कहने से ही लौट जानेवाले नहीं थे। इसलिए भीड़में धंसे बिना और चारा ही नहीं था ।
"
अध्याय ३२ : वह सप्ताह !
--
८८
मैंने कहा
'मगर उसका परिणाम तो आप जानते थे ? लोग घोड़ोंके नीचे जरूर ही कुचल गये हैं। मुझे तो ऐसा मालूम होता है कि घुड़सवारोंकी टुकड़ी को भेजने की जरूरत ही न थी । "
--२
साहबने जवाब दिया--" इसका पता प्रापको नहीं चल सकता । हम पुलिसवालोंको आपसे कहीं अधिक इसका पता रहता है कि लोगोंके ऊपर प्रापकी सीका कैसा असर पड़ा है । हम अगर पहलेसे ही कड़ी कार्रवाई न करें तो अधिक नुकसान होता है । मैं आपसे कहता हूं कि लोग तो आपके भी प्रभाव में रहनेवाले नहीं हैं । कानूनके भंगकी बात वे चट समझ लेते हैं, मगर शांतिकी बात समझना उनकी शक्तिके बाहर है । ग्रापका हेतु अच्छा है, मगर लोग आपका हेतु नहीं समझते; वे तो अपने ही स्वभावके अनुसार काम करेंगे । "
मैंने कहा -- " यही तो आपके और मेरे बीच मतभेद है । लोग स्वभावसे ही लड़ा नहीं हैं । किंतु शांतिप्रिय हैं ।
,
अब बहस होने लगी ।
अंतम साहब बोलें-- " खैर अगर आपको यह विश्वास हो जाय कि लोगोंने आपकी शिक्षाको नहीं समझा, तो आप क्या करेंगे ?
मैंने जवाब दिया--" अगर मुझे यह विश्वास हो जाय तो इस लड़ाईको मैं स्थगित कर दूंगा ।
" स्थगित करनेके क्या मानी ? आपने तो मि० बोरिंगसे कहा है कि मैं छूटते ही तुरंत पंजाब लौटना चाहता हूं । ”
C
'हां, मेरा इरादा तो दूसरी ही ट्रेन से लौटनेका था; किंतु यह तो प्राज नहीं हो सकता ।
"
""
'आप धीरज रक्खेंगे तो आपको और अधिक बातें मालूम होंगी । आपको कुछ पता है कि अभी अहमदाबादमें क्या चल रहा है ? अमृतसरमें
ܙܪ