Book Title: Atmakatha
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Delhi

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Page 493
________________ ४७६ आत्म-कथा : भाग ५ ३४ 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया" एक ओर यह धीमी किंतु शांति-रक्षक हलचल चल रही थीं तो उधर दूसरी ओर सरकारी दमन नीति बड़े वेग से चल रही थी । पंजाब में उसका असर प्रत्यक्ष देखा गया । वहां फौजी - कानून यानी जो - हुक्मी शुरू हुई । नेताओं को पकड़ा। खास अदालतें अदालतें न रहीं, किंतु एक सूबाका हुक्म बजानेवाली संस्था बन गईं। उन्होंने बिला सबूत ही सजायें ठोंक दीं। फौजी सिपाहियोंने निर्दोष लोगों को कीड़ोंकी तरह पेटके बल रेंगाया । इसके आगे तो मेरे सामने afariant area कत्लेग्रामकी कोई बिसात ही न थी। हालांकि जनताका तथा दुनियाका ध्यान उस कत्लने ही खींचा था । पंजाब में चाहे जिस तरह हो, मगर प्रवेश करनेका दबाव मुझपर डाला गया । मैंने वाइसरायको पत्र लिखे, तार किये; किंतु इजाजत न मिली । इजाजतके बिना चला जाऊं तो अंदर तो जा ही नहीं सकता था। हां, सविनय भंग करने का संतोष अलबत्ता मिल जाता । अब यह प्रश्न मेरे सामने आ खड़ा हुआ कि इस धर्म-संकटमें मुझे क्या करना चाहिए ? मुझे लगा कि अगर में मनाही हुक्मका अनादर करके प्रवेश करूं तो यह सविनय अनादर नहीं समझा जायगा । शांतिकी जिस प्रतीतिक मैं इच्छा करता था, वह मुझे अबतक नहीं हो रही थी । पंजाबकी नादिरशाहीने लोगोंकी प्रशांतिवृत्तिको बढ़ा दिया था । मुझे ऐसा लगा कि ऐसे समय में मेरा कानून-भंग आगमें घी डालने के समान होगा । और मैंने सहसा पंजाब में प्रवेश करनेकी सूचना नहीं मानी। यह निर्णय मेरे लिए एक कडुई घूंट थी । रोज पंजाब से अन्यायकी खबरें आतीं और रोज मुझे उन्हें सुनना, और दांत पीसकर बैठ रहना पड़ता था । इतने में प्रजाको सोता छोड़कर सरकार मि० हार्निमैनको चुरा ले गई । मि० हानिमैन ने 'बंबई क्रानिकल' को एक प्रचंड शक्ति बना दिया था । इस चोरी में जो गंदगी थी उसकी बदबू मुझे अबतक प्राया करती है । मैं जानता हूं कि मि० हार्निमैन अंधाधुंध नहीं चाहते थे । मैंने सत्याग्रह कमिटी की सलाह के बिना ही

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