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अध्याय ३८ : कांग्रेसमें प्रवेश
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३८ कांग्रेसमें प्रवेश
कांग्रेसमें यह जो मुझे भाग लेना पड़ा, इसे मैं कांग्रेस में अपना प्रवेश नहीं मानता। उसके पहले की कांग्रेसकी बैठकोंमें गया सो तो केवल वफादारीकी निशानीके तौरपर । एक छोटे-से-छोटे सिपाहीके सिवा वहां मेरा दूसरा काम कुछ होगा, ऐसा आभास मुझे दूसरी पिछली सभापोंके संबंधमें नहीं हुआ और न ऐसी इच्छा ही हुई।
किंतु अमृतसरके अनुभवने बताया कि मेरी एक शक्तिका उपयोग कांग्रेसके लिए है। पंजाब-समितिके मेरे कामसे लोकमान्य, मालवीयजी, मोतीलालजी, देशबंधु इत्यादि खुश हुए थे, यह मैंने देख लिया था। इस कारण उन्होंने मुझे अपनी बैठकोंमें और सलाह-मशवरेमें बुलाया । इतना तो मैंने देखा कि था विषयसमितिका सच्चा काम ऐसी बैठकोंमें होता था और ऐसे मशवरोंमें खासकर वे लोग होते, जिनपर नेताओंका खास विश्वास या आधार होता; पर दूसरे लोग भी किसी-न-किसी बहाने घुस जाया करते ।
__ आगामी वर्ष किये जानेवाले दो कामोंमें मेरी दिलचस्पी थी; क्योंकि उनमें मेरा चंचुपात हो गया था ।
एक था जलियांवालाबागके कल्लका स्मारक । इसके लिए कांग्रेसने बड़ी शानके साथ प्रस्ताव पास किया था। उसके लिए कोई पांच लाख रुपयेकी रकम एकत्र करनी थी। उसके ट्रस्टियोंमें मेरा भी नाम था। देशके सार्वजनिक कार्योंके लिए भिक्षा मांगनेका भारी सामर्थ्य जिन लोगोंमें है, उनमें मालवीयजीका नंबर पहला था और है। मैं जानता था कि मेरा दर्जा उनसे बहत घटकर न होगा। अपनी इस शक्तिका आभास मुझे दक्षिण अफ्रीकामें मिला था । राजा-महाराजाओंपर जादू फेरकर लाखों रुपये पानेका सामर्थ्य मुझमें न था, न आज भी है। इस बातमें मालवीयजीके साथ प्रतिस्पर्धा करनेवाला मैंने किसीको नहीं देखा; पर जलियांवालाबागके काममें उन लोगोंसे द्रव्य नहीं लिया जा सकता, यह मैं जानता था। अतएव इस स्मारकके लिए धन जुटानेका मुख्य भार मुझपर .