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अध्याय ३३ : 'हिमालय-जैसी भूल'
तब जुर्माना देने से बचने के लिए ही रातको वह बत्ती जलावेगा । नियमके ऐसे पालनको स्वेच्छा से किया गया पालन नहीं कह सकते ।
किंतु सत्याग्रही तो समाजके कानूनोंका पालन समझ-बूझकर, स्वेच्छा से और धर्म समझकर करेगा । इस प्रकार जिसने समाजके नियमोंका जानबूझ कर पीलन किया है, उसी में समाजके नियम, नीति-नीतिका भेद समझने की शक्ति आती है, और उसे मर्यादित अवस्था नोंमें खास-खास नियमोंके भंग करनेका अधिकार प्राप्त होता है । ऐसा अधिकार प्राप्त करनेसे पहले ही सविनय भंगके लिए न्यौता देने की भूल मुझको हिमालय जैसी लगीं और खेड़ा जिलेमें प्रवेश करते ही मुझे वहांकी लड़ाई याद हो आई । मैंने समझ लिया कि मैं रास्ता चूक गया। मुझे ऐसा लगा कि इसके पहले कि लोग सविनय भंग करनेके लायक बने, उन्हें उसका रहस्य खूब समझ लेना चाहिए । जो रोज ही अपने मनसे कानूनको तोड़ते हों, जो छिपाकर अनेकों बार कानूनका भंग करते हों, वे भला एकाएक कैसे सविनयभंगको पहचान सकते हैं ? उसकी मर्यादाका पालन कैसे कर सकते हैं ?
यह बात सहज ही समझ में आ सकती है कि इस प्रदर्शतक हजारोंलाखों आदमी नहीं पहुंच सकते, किंतु बात अगर ऐसी हो तो सविनय भंग कराने के पहले ऐसे शुद्ध स्वयंसेवकोंका दल पैदा होना चाहिए जो लोगोंको इसका ज्ञान करावें और प्रतिक्षण उन्हें रास्ता बतलाते रहें और ऐसे दलको सविनयभंग और उसकी मर्यादाकी पूरी-पूरी समझ होनी चाहिए ।
ऐसे विचारोंको लेकर मैं बंबई पहुंचा और सत्याग्रह - सभाके द्वारा मैंने सत्याग्रही स्वयंसेवकों का एक दल खड़ा किया । उनके जरिये लोगोंको सविनयभंग की तालीम देना शुरू की और सत्याग्रहका रहस्य बतलानेवाली पत्रिकायें निकालीं । यह काम चला तो सही, मगर मैंने देखा कि इसमें मैं लोगोंकी बहुत दिलचस्पी नहीं पैदा कर सका । कभी काफी स्वयंसेवक न हुए । यह नहीं कहा सकता कि जो भरती हुए उन सभीने नियमित तालीम भी पूरी कर ली हो । भरती नाम लिखानेवाले भी, जैसे-जैसे दिन जाने लगे, दृढ़ होनेके बदले खिसकने लगे । मैंने समझ लिया कि सविनयभंगकी गाड़ीके जिस चाल से चलनेकी मैं आशा रखता था, वह उससे कहीं धीमी चलेगी ।