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अध्याय ३५ : पंजाबमें
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यह कत्ल न हुआ होता और न फौजी कानून ही जारी हो पाता । कुछ लोगोंने तो धमकियां भी दीं कि यदि अब आपने पंजाबमें पैर रक्खा तो आपका खून कर
डाला जायगा ।
पर मैं तो मान रहा था कि मैंने जो कुछ किया है वह इतना उचित और ठीक था कि उसमें समझदार आदमियोंको गलतफहमी होनेकी संभावना ही न थी । मैं पंजाब जानेके लिए अधीर हो रहा था । इससे पहले मैंने पंजाब देखा नहीं था; पर अपनी प्रांखों जो कुछ देख सकूं, देखनेकी तीव्र इच्छा थी
मुझे बुलानेवाले डा० सत्यपाल, किचलू, रामभजदत्त चौधरी आादिसे मिलने की अभिलाषा भी हो रही थी । वे थे तो जेलमें, पर मुझे पूरा विश्वास था कि उन्हें सरकार अधिक दिनों तक जेल में नहीं रख सकेगी। जब-जब मैं बंबई जाता, तब-तब कितने ही पंजाबी भाई मिलने आ जाते थे । उन्हें मैं प्रोत्साहन देता और वे प्रसन्न होकर उसे ले जाते । उस समय मेरा आत्मविश्वास बहुत था । पर मेरे पंजाब जानेका दिन दूर-ही-दूर होता जाता था । वाइसराय भी यह कहकर उसे दूर ढकेलते जाते थे कि अभी समय नहीं है ।
इसी बीच हंटर कमिटी आई । वह फौजी कानूनके दौरेमें पंजाब के अधिकारियों द्वारा किये कृत्योंकी जांच करनेके लिए नियुक्त हुई थी । दीनबंधु एंड्रूज वहां पहुंच गये थे । उनकी चिट्ठियोंमें वहांका हृदयद्रावक वर्णन होता था । उनके पत्रोंसे यह ध्वनि निकलती थी कि अखबारोंमें जो कुछ बातें प्रकाशित हो चुकी हैं उनसे भी अधिक जुल्म फौजी कानूनका था । वह भी पंजाव प्रानेका आग्रह कर रहे थे। दूसरी ओर मालवीयजी के भी तार आ रहे थे कि आपको पंजाब अवश्य पहुंच जाना चाहिए । तब मैंने फिर वाइसरायको तार दिया । उनका जवाब आया कि फलां तारीखको आप जा सकते हैं । अब तारीख ठीक-ठीक याद नहीं पड़ती, पर बहुत करके वह १७ अक्तूबर थी ।
लाहौर पहुंचने पर मैंने जो दृश्य देखा वह कभी भुलाया नहीं जा सकता । स्टेशनपर मुझे लिवाने के लिए ऐसी भीड़ इकट्ठी हुई थी, मानो किसी बहुत दिनके बिछड़े प्रिय-जनसे मिलनेके लिए उसके सगे-संबंधी आये हों। लोग हर्षसे पागल हो रहे थे । पंडित रामभजदत्त चौधरी के यहां मैं ठहराया गया था । श्रीमती सुरलादेवी चौधरानी से मेरा पहलेका परिचय था । मेरे आतिथ्यका भार उनपर