Book Title: Atmakatha
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Delhi

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Page 456
________________ अध्याय २२ उपवास ४३६ इसका अधिकार था । इस हड़तालके विरुद्ध अचल रहने में सेठ अंबालाल अग्रसर थे। उनकी दृढ़ता आश्चर्यजनक थी। उनकी स्पष्ट-हृदयता भी मुझे उतनी ही रुची। उनके खिलाफ लड़ना मुझे प्रिय लगा। इनके-जैसे अग्रसर जहां विरोधी-पक्षमें हों, उपवीसके द्वारा उनपर पड़नेवाला बुरा असर मुझे खटका । फिर मेरे ऊपर उनकी पत्नी सरलादेवीका सगी बहनके समान स्नेह था। मेरे उपवाससे होनेवाली उनकी व्यग्रता मुझसे देखी नहीं जाती थी। __ मेरे पहले उपचासमें तो अनसूया बहन और दूसरे कई मित्र तथा कुछ मजदूर शामिल हुए। और अधिक उपवास न करनेकी जरूरत मैं उन्हें मुश्किलसे समझा सका। इस तरह चारों ओरका वातावरण प्रेममय बन गया। मिलमालिक तो केवल दयाकी ही खातिर समझौता करनेके रास्ते ढूंढ़ने लगे। अनसूया बहनके यहां उनकी बातचीत होने लगी। श्री आनंदशंकर ध्रुव भी बीच में पड़े। अंत में वह पंच चुने गये और हड़ताल छूटी। मुझे तीन ही दिन उपवास करना पड़ा। मालिकोंने मजदूरोंको मिठाई बांटी । इक्कीसवें दिन समझौता हुआ। समझौतेका सम्मेलन हुआ। उसमें मिल-मालिक और उत्तर विभागके कमिश्नर आये थे। कमिश्नरने मजदूरोंको सलाह दी थी- “तुम्हें हमेशा मि. गांधी की बात माननी चाहिए।" इन्हीं कमिश्नर साहबके खिलाफ इस घटनाके कुछ दिनों बाद तुरंत ही मुझे लड़ना पड़ा था ! समय बदला, इसलिए वह भी बदल गए और खेड़ाके पाटीदारोंको मेरी सलाह न माननेके लिए कहने लगे । एक मजेदार मगर उतनी ही करुणाजनक घटनाका भी यहां उल्लेख करना उचित है । मालिकोंकी तैयार कराई मिठाई बहुत थी और सवाल यह हो पड़ा था कि हजारों मजदूरोंमें वह बांटी किस तरह जाय? यह समझकर कि जिस पेड़के आश्रयमें मजदूरोंने प्रतिज्ञा की थी वहींपर बांटना उचित होगा, और दूसरी किसी जगह हजारों मजदूरोंको इकट्ठा करना भी असुविधाकी बात थी, उसके आसपासके खुले मैदानमें मिठाई बांटनेकी बात तय पाई थी। मैंने अपने भोलेपनमें मान लिया कि इक्कीस दिनों तक अनुशासनमें रहे मजदूर बिना किसी प्रयत्नके ही पंक्तिमें खड़े होकर मिठाई ले लेंगे और अधीर होकर मिठाई पर हमला नहीं कर बैठेंगे; किन्तु मैदानमें बांटनेके दो-तीन तरीके आजमाये

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