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अध्याय २३ : खेड़ामें सत्याग्रह
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सरोंका तबका बिलकुल हलका व्यवहार अब तो असंभव-सा जान पड़ता है ।
लोगोंकी मांग ऐसी साफ और मामूली थी कि उसके लिए लड़ाई लड़नेकी भी जरूरत नहीं होनी चाहिए। यह कानून था कि अगर फसल चार आने या उससे भी कम हो तो उस साल लगान माफ होना चाहिए; किंतु सरकारी अफसरोंका अनुमान चार आनेसे अधिकका था। लोगोंकी ओरसे इसके सबूत पेश किये गये कि फसल चार आने से कम हुई है । मगर सरकार मानने ही क्यों लगी ? लोगोंकी ओरसे पंच बनानेकी मांग हुई। सरकारको वह असह्य लगी। जितनी विनय की जा सकती थी उतनी कर लेने के बाद, साथियोंके साथ सलाह करके, मैंने लोगोंको सत्याग्रह करनेकी सलाह दी ।
साथियोंमें खेड़ा जिलेके सेवकोंके अलावा खास तौरपर श्री वल्लभभाई पटेल, श्री शंकरलाल बैंकर, श्री अनसूयाबहन, श्री इंदुलाल कन्हैयालाल याज्ञिक, श्री महादेव देसाई वगैरा थे । वल्लभभाई अपनी बड़ी और दिनों-दिन बढ़ती हुई वकालतका त्याग करके आये थे। यह भी कहा जा सकता है कि उसके बाद वह फिर कभी जमकर वकालत कर ही नहीं सके ।
हमने नडियाद-अनाथाश्रममें डेरा जमाया। अनाथाश्रममें ठहरनेमें कोई विशेषता नहीं थी; किंतु इसके समान कोई दूसरा खाली मकान नडियादमें नहीं था, जहां इतने अधिक आदमी रह सकें। अंतमें नीचे लिखी प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर लिये गये--
"हम जानते हैं कि हमारे गांवमें फसल चार आने से भी कम हुई है। इसलिए हमने अगले सालतक कर वसूल करना मुल्तवी रखने की अर्जी सरकार को दी है ; मगर फिर भी लगानकी वसूली बंद नहीं हुई है, इसलिए हम नीचे सही करनेवाले प्रतिज्ञा करते हैं कि इस सालका सरकारका पुराया बकाया लगान अदा न करेंगे; किंतु उसे वसूल करने के लिए सरकार जो-कुछ कानूनी कार्रवाई करे उसे करने देंगे और उससे होनेवाला कष्ट सहेंगे। यदि इससे हमारी जमीनें जब्त होंगी तो वह भी होने देंगे; किंतु अपने हाथों लगान चुकाकर, झूठे वनकर, हम स्वाभिमान नहीं खोएंगे। अगर सरकार दूसरी किस्ततक बकाया लगान वसूल करना सभी जगह मुल्तवी कर दे तो हममें जो लोग समर्थ हैं वे पूरा या बकाया लगान चुकानेको तैयार हैं। हममें जो समर्थ हैं उनके लगान न देनेका कारण