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आत्म-कथा : भाग ५
हुआ, न दुःख ही हुआ; किंतु तभीसे जोशीले काम और धीमे रचनात्मक कामके भेदका और पहलेके प्रति लोगोंके पक्षपात तथा दूसरेके प्रति अरुचिका अनुभव मैं बराबर करता आया हूं।
किंतु इस विषयके लिए एक अलग ही प्रकरण देना ठीक रहेगा।
सातकी रातको मैं दिल्ली और अमृतसरके लिए रवाना हुआ। आठको मथुरा पहुंचते ही कुछ भनक मिली कि शायद मुझे पकड़ लें। मथुराके बाद एक स्टेशनपर गाड़ी खड़ी थी। वहींपर मुझे आचार्य गिडवानी मिले। उन्होंने मुझे यह विश्वस्त खबर दी कि “आपको जरूर पकड़ेंगे और मेरी सेवाकी जरूरत हो तो मैं हाजिर हूं।" मैंने उपकार माना और कहा कि जरूरत पड़नेपर आपसे सेवा लेना नहीं भूलूंगा।
पलवल स्टेशन आने के पहले ही पुलिस-अफसरने मेरे हाथ में एक हुक्म लाकर रक्खा । “तुम्हारे पंजाबमें प्रवेश करनेसे अशांति बढ़ने का भय है, इसलिए तुम्हें हुक्म दिया जाता है कि पंजाबकी सीमामें दाखिल मत होनो ।" हुक्मका
आशय यह था। पुलिसने हुक्म देकर मुझे उतर जानेके लिए कहा। मैंने उतरनेसे इन्कार किया और कहा-- "मैं अशांति बढ़ाने नहीं, किंतु आमंत्रण मिलनेसे अशांति घटाने के लिए जाना चाहता हूं। इसलिए मुझे खेद है कि म इस हुक्मको नहीं मान सकता ।"
पलवल आया। महादेव देसाई मेरे साथ थे। उन्हें दिल्ली जाकर श्रद्धानंदजीको खबर देने और लोगोंको शांतिका संदेश देनेके लिए कहा । हुक्मका अनादर करनेसे जो सजा हो, उसे सहनेका मैने निश्चय किया है तथा सजा होनेपर भी शांत रहने में ही हमारी जीत है, यह समझानेके लिए कहा ।
__ पलवल स्टेशनपर मुझे उतारकर पुलिसके हवाले किया गया। दिल्लीसे आनेवाली किसी ट्रेनके तीसरे दर्जे के डिब्बे में मुझे बैठाया। साथमें पुलिसकी पार्टी बैठी। मथुरा पहुंचनेपर मुझे पुलिस-बैरकमें ले गये। यह कोई भी अफसर नहीं बता सका कि मेरा क्या होगा और मुझे कहां ले जाना है। सवेरे ४ बजे मुझे उठाया और बंबई ले जानेवाली एक मालगाड़ी में ले गये। दोपहरको सवाई माधोपुरमें उतार दिया। वहां बंबईकी मेल ट्रेनमें लाहौरसे इंसपेक्टर बोरिंग आये मैं उनके हवाले किया गया। अब मुझे पहले दर्जेमें बैठाया गया। साथमें साहब