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'आत्म-कथा : भाग ५
पान चलती थी। छठी तारीख तक हड़तालकी मुद्दत बढ़ा दी जाने की खबर दिल्ली में देरसे पहुंची थी। दिल्ली में उस दिन जैसी हड़ताल हुई, वैसी पहले कभी न हुई थी। हिंदू और मुसलमान दोनों एक दिल होने लगे। श्रद्धानंदजी को जुमा मस्जिदमें निमंत्रण दिया गया था और वहां उन्हें भाषण करने दिया गया था। ये सब बातें सरकारी अफसर सहन नहीं कर सकते थे। जलूस स्टेशनकी
ओर चला जा रहा था कि पुलिसने रोका और गोली चलाई। कितने ही आदमी जख्मी हुए, और कुछ खून हुए। दिल्ली में दमन-नीति शुरू हुई। श्रद्धानंदजीने मुझे दिल्ली बुलाया। मैंने तार किया कि बंबईमें छठी तारीख मना कर मैं तुरंत दिल्ली रवाना होऊंगा।
जैसा दिल्ली में हुआ, वैसा ही लाहौर में और अमृतसरमें भी हुआ था। अमृतसरसे डा०. सत्यपाल और किचलूके तार मुझे जरूरीमें वहां बुला रहे थे। उस समय इन दोनों भाइयोंको जरा भी नहीं पहचानता था। दिल्लीसे होकर जानेके निश्चयकी खबर मैंने उन्हें दी थी। . छठीको बंबईमें सुबह हजारों आदमी चौपाटीमें स्नान करने गये और वहांसे ठाकुरद्वार जानेके लिए जलूस निकला। उसमें स्त्रियां और बच्चे भी थे। मुसलमान भी अच्छी तादादमें शामिल हुए थे। इस जलूसमेंसे हमें मुसलमान भाई एक मस्जिदमें ले गये। वहां श्रीमती सरोजिनी देवीसे तथा मुझसे भाषण कराये। यहां श्री विठ्ठलदास जेराजाणीने स्वदेशीकी तथा हिंदु-मुसलमानऐक्यकी प्रतिज्ञा लिवानेके लिए सुझाया। मैंने ऐसी उतावली में प्रतिज्ञा लिवाने से इन्कार कर दिया। जितना हो रहा था उतनेसे ही संतोष माननेकी सलाह दी। प्रतिज्ञा लेने के बाद नहीं टूट सकती। हमें अभी स्वदेशीका अर्थ भी समझना चाहिए। हिंदू-मुसलमान-ऐक्यकी जिम्मेदारी का खयाल रखना चाहिए वगैरा कहा और सुझाया कि जिन्हें प्रतिज्ञा लेनेकी इच्छा हो, वे कल सवेरे भले ही चौपाटीके मैदानमें आ जायं । . . . बंबईकी हड़ताल सोलहों आना संपूर्ण थी।
यहां कानूनके सविनय भंगकी तैयारी कर रक्खी थी। भंग हो सकने लायक दो-तीन वस्तुएं थीं। ये कानून ऐसे थे, जो रद्द होने लायक थे और इनको सब लोग सहज ही भंग कर सकते थे। इनमेंसे एकको ही चुननेका निश्चय हुआ