Book Title: Atmakatha
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Delhi

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Page 476
________________ अध्याय २६ : रौलट-ऐक्ट और मेरा धर्म-संकटः ४५९ हो या गलत, मैंने तो उन्हें उनके उपचारोंका प्रयोग अपने शरीर पर करने दिया। बाह्य उपचारोंसे अच्छा होना मुझे पसंद था। फिर ये तो बरफ अर्थात् पानीके उपचार थे। उन्होंने मेरे सारे शरीरपर बरफ मलना शुरू किया। यद्यपि इसका फल मुझपर उतना नहीं हुआ, जितना कि वह मानते थे, तथापि जो मैं रोज मृत्यु की राह देखता पड़ा रहता था सो अब नहीं रहा । मुझे जीनेकी आशा बंधने लगी। कुछ उत्साह भी मालूम होने लगा। मनके उत्साहके साथ-साथ शरीरमें भी कुछ ताजगी मालूम होने लगी। खुराक भी थोड़ी बढ़ी। रोज पांच-दस मिनट टहलने लगा। “अगर आप अंडेका रस पियें तो आपके शरीरम इससे भी अधिक शक्ति पा जावेगी, इसका मैं आपको विश्वास दिला सकता हूं। और अंडा तो दूधके ही समान निर्दोष वस्तु होती है । वह मांस तो हर्गिज नहीं कहा जा सकता। फिर यह भी नियम नहीं है कि प्रत्येक अंडे में बच्चे पैदा होते ही हों। मैं साबित कर सकता हूं कि ऐसे निर्जीव अंडे सेये जाते हैं, जिनमेंसे बच्चे पैदा नहीं होते।" उन्होंने कहा । पर ऐसे निर्जीव अंडे लेने को भी मैं तो राजी न हुआ । फिर भी मेरी गाड़ी कुछ आगे चली और मैं आस-पास के कामोंमें थोड़ी बहुत दिलचस्पी लेने लगा। रौलट-ऐक्ट और मेरा धर्म-संकट माथेरान जानेसे शरीर जल्दी ही पुष्ट हो जायगा, ऐसी मित्रोंसे सलाह पाकर मैं माथेरान गया। परंतु वहांका पानी भारी था। इसलिए मुझ जैसे बीमारके लिए वहां रहना मुश्किल ही पड़ा। पेचिशके कारण गुदा-द्वार बहुत ही नाजुक पड़ गया था और वहां चमड़ी फट जानेसे मल त्यागके समय बड़ा दर्द होता था। इसलिए कुछ भी खाते हुए डर लगता था। अतः एक सप्ताहमें ही माथेरानसे लौट आया । अब मेरे स्वास्थ्यकी रखवालीका काम श्री शंकरलालने अपने हाथमें ले लिया। उन्होंने डा० दलालकी सलाह लेनेपर बहुत जोर दिया। डा० दलाल आये। उनकी तत्काल निर्णय करनेकी शक्तिने मुझे मोह लिया।

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