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अध्याय २४ : 'ध्याज- चोर'
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करने का ढंग बतलाना और गले उतारना लगभग अशक्य-सा ही लगता था । अफसरोंका डर छोड़नेके बाद उनके किये अपमानोंका बदला लेनेकी इच्छा किसे न होती ? मगर फिर भी सत्याग्रही के लिए अविनयी होना तो दूधमें जहर पड़नेके समान है । पीछेसे मैंने यह और अधिक समझा कि पाटीदार अभी विनयका पूरा पाठ नहीं पढ़ सके थे । अनुभवसे देखता हूं कि विनय सत्याग्रहका सबसे कठिन अंश है । विनयका अर्थ यहां पर केवल मानके साथ वचन बोलनाभर ही नहीं है । विनय है विरोधी के प्रति भी मनमें आदर रखना, सरल भाव, उसके हितकी इच्छा और उसी के अनुसार बर्ताव रखना ।
शुरूके दिनोंमें लोगों में खूब हिम्मत दिखाई पड़ती थी । शुरू-शुरू में सरकारी कार्रवाइयां भी नर्म होती थीं; किंतु जैसे-जैसे लोगोंकी दृढ़ता बढ़ती हुई जान पड़ी, वैसे-वैसे सरकार भी अधिक उग्र उपाय करने लगी । जब्ती वालोंने लोगों ढोर बेच दिये. घरमेंसे मनचाहा माल उठा ले गये । चौथाई जुरमानेके नोटिस निकले । किसी-किसी गांवकी सारी फसल जब्त हो गई । अब लोग घबराये । कुछ लोगोंने लगान दे दिया। दूसरे यह चाहने लगे कि अगर सरकारी अफसर ही हमारा कुछ माल जब्त करके लगान अदा कर लें तो हम सस्ते ही छूटें । पर कितने ऐसे भी निकले, जो मरते दमतक टेकपर अड़े रहनेवाले थे ।
इतने ही शंकरलाल परीखकी जमीनपर रहनेवाले उनके आदमीने उनका लगान भर दिया । इससे हाहाकार हो गया । शंकरलाल परीखने वह जमीन देशको अर्पण करके अपने श्रादमीकी भूलका प्रायश्चित्त किया । उनकी प्रतिष्ठा अक्षत रही। दूसरोंके लिए यह उदाहरण हुआ ।
एक अनुचित रूपसे जब्त किये गये खेतमें प्याज की फसल तैयार थी । मैंने डरे हुए लोगोंको उत्साह देनेके लिए मोहनलाल पंड्या नेतृत्वमें उस खेतकी फसल काट लेने की सलाह दी । मेरी दृष्टिमें उसमें कानूनका भंग नहीं होता था । मैंने समझाया, अगर होता भी हो तो भी जरासे लगान के लिए सारी खड़ी फसल की जब्ती कानून सम्मत होनेपर भी नीति-विरुद्ध है और सरासर लूट है तथा इस तरह की गई जब्तीका अनादर करना धर्म है । ऐसा करनेमें जेल जाने तथा सजा पाने की जो जोखिम थी सो लोगोंको मैंने स्पष्ट रूपसे बतला दी थी । मोहनलाल isit तो यही चाहिए था । उन्हें यह रुचिकर नहीं लग रहा था कि सत्याग्रह