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अध्याय २२ उपवास
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समाज जब पचीस वर्ष तक बचा रहा तो इसे संयोग या आकस्मिक घटना माननेके बदले ईश्वर-कृपा मानना वहम हो तो, यह वहम भी अपनाने लायक है ।
जिस समय मजदूरों की हड़ताल हुई उस समय आश्रमका पाया चुना जा रहा था। आश्रमकी प्रधान प्रवृत्ति बुनाई की थी। कताईकी तो मैं अभी खोज ही नहीं कर सका था। इसलिए निश्चय था कि पहले बुनाई-घर बनाया जाय । इस समय उसकी नींव डाली जा रही थी।
उपवास मजदूरोंने पहले दो हफ्ते बड़ी हिम्मत दिखलाई । शांति भी खूब रक्खी रोजकी सभात्रोंमें भी वे बड़ी संख्यामें आते थे । मैं उन्हें रोज ही प्रतिज्ञाका स्मरण कराता था। वे रोज पुकार-पुकार कर कहते थे, " हम मर जायंगे, पर अपनी टेक कभी न छोड़ेंगे ।"
___ किंतु अंतमें वे ढीले पड़ने लगे । और जैसे कि निर्बल अादमी हिंसक होता है, वैसे ही, वे निर्बल पड़ते ही मिलमें जानेवाले मजदूरोंसे द्वेष करने लगे
और मुझे डर लगा कि शायद कहीं उनपर ये बलात्कार न कर बैठे। रोजकी सभामें आदमियोंकी हाजिरी कम हुई। जो आते भी उनके चेहरोंपर उदासी छाई हुई थी। मुझे खबर मिली कि मजदूर डिगने लगे हैं। मैं तरदुदमें पड़ा । मैं सोचने लगा कि ऐसे समयमें मेरा क्या कर्त्तव्य हो सकता है । दक्षिण अफ्रीकाके मजदूरों की हड़तालका अनुभव मुझे था, मगर यह अनुभव मेरे लिए नया था । जिप प्रतिज्ञा करानेमें मेरी प्रेरणा थी, जिसका साक्षी मैं रोज ही बनता था, वह प्रतिज्ञा कैसे टूटे ? यह विचार या तो अभिमान कहा जा सकता है, या मजदूरोंके और सत्यके प्रति प्रेम समझा जा सकता है ।
___ सवेरेका समय था। मैं सभामें था। मुझे कुछ पता नहीं था कि क्या करना है, मगर सभामें ही मेरे मुंहसे निकल गया- "अगर मजदूर फिरसे तैयार न हो जायं और जवतक कोई फैसला न हो जाय तबतक हड़ताल न निभा सकें, तो तबतक मैं उपवास करूंगा।" वहां पर जो मजदूर थे, वे हैरतमें आगये ।