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अध्याय २० : मजदूरोंसे संबंध
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जांच करके थोड़े ही समय में चंपारन लौट आऊंगा और वहांके रचनात्मक कामको संभाल लूंगा ।
परंतु अहमदाबाद पहुंचने के बाद ऐसे काम निकल आये कि मैं बहुत समय तक चंपारन न जा सका और जो पाठशालायें वहां चलती थीं वे एकके बाद एक टूट गईं । साथियोंने और मैंने जो कितने ही हवाई किले बांध रक्खे थे, वे कुछ समय के लिए टूट गये ।
चंपारनमें ग्राम-पाठशाला और ग्राम-सुधारके अलावा गोरक्षाका काम भी मैंने अपने हाथमें ले लिया था । अपने भ्रमणमें मैं यह बात देख चुका था कि गोशाला और हिंदी-प्रचारके कामका ठेका मारवाड़ी भाइयोंने ले लिया है । बेतिया में एक मारवाड़ी सज्जन ने अपनी धर्मशाला में मुझे प्रश्रय दिया था । बेतियाके मारवाड़ी सज्जनोंने मुझे उनकी गोशालाकी ओर आकृष्ट किया था । गोरक्षाके संबंध में जो विचार मेरे ग्राज हैं वही उस समय बन चुके थे । गोरक्षाका अर्थ है वृद्धि, गोजातिका सुधार, बैलसे मर्यादित काम लेना, गोशालाको प्रदर्श दुग्धालय बनाना, इत्यादि । इस काम में मारवाड़ी भाइयोंने पूरी मदद देने का वचन दिया था; परंतु मैं चंपारनमें जमकर नहीं बैठ सका। इसलिए वह काम अधूरा ही रह गया । बेतिया में गोशाला तो आज भी चल रही है; परंतु वह प्रदर्श दुग्धालय नहीं बन सकी। चंपारन में बैलोंसे ग्राज भी ज्यादा काम लिया जाता है । हिंदू- नामधारी अब भी बैलोंको निर्दयता से पीटते हैं और इस तरह अपने धर्मको डुबोते हैं । यह अफसोस मुझे हमेशा के लिए रह गया है । मैं जब-जब चंपारन जाता हूं तब तब उन अधूरे रहे कामोंको स्मरण करके एक लंबी सांस छोड़ता हूं और उन्हें अधूरा छोड़ देनेके लिए मारवाड़ी भाइयों और बिहारियोंका मीठा उलाहना सुनता हूं ।
पाठशालाओंका काम तो एक नहीं दूसरी रीतिसे दूसरी जगह चल रहा है; परंतु गो-सेवा कार्यक्रम की तो जड़ ही नहीं जमी थी; इसलिए उसे आवश्यक दिशामें गति नहीं मिल सकी ।
अहमदाबादमें खेड़ाके कामके लिए सलाह-मशवरा चल रहा था कि इतनेमें मजदूरोंका काम मैंने अपने हाथमें ले लिया ।
इसमें मेरी स्थिति बड़ी नाजुक थी। मजदूरोंका पक्ष मुझे मजबूत मालूम