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आत्म-कथा: भाग ५
हा। श्रीमती अनसूया बहनको अपने सगे भाईके साथ लड़नेका प्रसंग आगया था। मजूरों और मालिकोंके इस दारुण युद्ध में श्री अंबालाल साराभाईने मुख्य भाग लिया था। मिल-मालिकोंके साथ मेरा मीठा संबंध था। उनके साथ लड़ना मेरे लिए विषम काम था। मैंने उनसे आपसमें बातचीत करके अनुरोध किया कि पंच बनाकर मजदूरोंकी मांगका फैसला कर लीजिए; परंतु मालिकोंने अपने और मजदूरोंके बीच में पंचकी मध्यस्थताके औचित्यको पसंद न किया। - तब मजदूरोंको मैंने हड़ताल कर देनेकी सलाह दी। यह सलाह देनेके पहले मैंने मजदूरों और उनके नेताओं से काफी पहचान और बातचीत कर ली थी। उन्हें मैंने हड़तालकी नीचे लिखी शर्ते समझाई
(१) किसी हालतमें शांति भंग न करना ।
(२) जो कामपर जाना चाहें उनके साथ किसी किस्मकी ज्यादती या जवरदस्ती न करना ।
(३) मजदूर भिक्षान्न न खावें ।
(४) हड़ताल चाहे जबतक करना पड़े, पर वे दृढ़ रहें और जब रुपया-पैसा न रहे तो दूसरी मजदूरी करके पेट पालें ।।
__ अगुना लोग इन शर्तोको समझ गये और उन्हें ये पसंद भी आईं। अब मजदूरोंने एक ग्राम सभा की और उसमें प्रस्ताव किया कि जबतक हमारी मांग स्वीकार न की जाय अथवा उसपर विचार करने के लिए पंच न मुकर्रर हों तबतक हम काम पर न जायेंगे ।
. इस हड़ताल में मेरा परिचय श्री वल्लभभाई पटेल और श्री शंकरलाल बैंकरसे बहुत अच्छी तरह हो गया। श्रीमती अनसूया बहनसे तो मेरा परिचय पहले ही खूब हो चुका था ।
हड़तालियोंकी सभा रोज सावरमतीके किनारे एक पेड़के नीचे होने लगी। वे सैकड़ोंकी संख्यामें आते। मैं रोज उन्हें अपनी प्रतिज्ञाका स्मरण कराता। शांति रखने और स्व-मानकी रक्षा करनेकी आवश्यकता उन्हें समझाता । वे अपना ‘एक टेक'का झंडा लेकर रोज शहरमें जलूस निकालते और सभामें आते ।
यह हड़ताल २१ दिन चली। इस बीच में समय-समयपर मालिकोंसे