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आत्म-कथा : भाग ५
लिखी जा सकती थी और अंतको जो कानून बना वह न बन पाता। निलहोंकी सत्ता बहुत प्रबल थी। रिपोर्ट हो जाने के बाद भी कितनोंने बिलका विरोध किया था, परंतु सर एडवर्ड गेट अंततक दृढ़ रहे और समितिकी सिफारिशोंका पूरा-पूरा पालन उन्होंने कराया ।।
__इस तरह सौ वर्षका पुराना यह तीन कठिया' कानून रद हुआ और उसके साथ ही निलहोंका राज्य भी अस्त हो गया । रैयतने, जो दबी हुई थी, अपने बलको कुछ पहचाना और उसका यह वहम दूर होगया कि नीलका दाग तो धोये नहीं धुलता।
मेरी इच्छा थी कि चंपारनमें जो रचनात्मक कार्य आरंभ हुआ है उसे जारी रखकर लोगोंमें कुछ वर्षों तक काम किया जाय और अधिक पाठशालाएं खोलकर अधिक गांवोंमें प्रवेश किया जाय । क्षेत्र तो तैयार था; परंतु मेरे मनसूबे ईश्वरने बहुत बार पार नहीं पड़ने दिये हैं । मैंने सोचा था एक और दैवने मुझे दूसरे ही काममें ले घसीटा ।
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मजदूरोंसे संबंध अभी मैं चंपारनमें जांच-समितिका काम खतम कर ही रहा था कि इतने में खेड़ासे मोहनलाल पंड्या और शंकरलाल परीखका पत्र मिला कि खेड़ा जिलेमें फसल नष्ट हो गई है और उसका लगान माफ होना जरूरी है। आप आइए और वहां चलकर लोगोंको राह दिखाइए। वहां जाकर जबतक मैं खुद जांच न करलूं, तबतक कुछ सलाह देनेकी इच्छा मुझे न थी और न ऐसी सामर्थ्य और साहस ही था।
दूसरी ओर श्रीमती अनसूया बहनकी चिट्ठी उनके 'मजूर-संघ' के संबंधमें मिली । मजदूरोंका वेतन कम था । बहुत दिनोंसे उनकी मांग थी कि वेतन बढ़ाया जाय । इस संबंधमें उनका पथ-प्रदर्शन करने का उत्साह मुझे था। यह काम यों तो छोटा-सा था; परंतु मैं उसे दूर बैठकर नहीं कर सकता था। इससे मैं तुरंत अहमदाबाद पहुंचा। मैंने सोचा तो यह था कि दोनों कामोंकी