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अध्याय १३ : फिनिक्सकी स्थापना
लोग यद्यपि संस्थावानी न बने, पर फिर भी उन्होने जहां प्रेस जाय वहां जाना स्वीकार किया ।
इस तरह कार्यकर्त्ताग्रिोंके साथ बातचीत करनेमें दो ऋविक दिन गये हों, ऐसा याद नहीं पड़ता। तुरंत ही मैंने अखवार में विज्ञापन दिया कि डरबनके arata fear भी स्टेशनके पास जमीनकी आवश्यकता है। उत्तर फिनिक्की जीनका संदेशा था । वेस्ट और में जमीन देखने गये और सात दिनके अंदर २० एकड़ जमीन ले ली। उसमें एक छोटा-सा पानीका लरता भी था । कुछ are और नारंगी पेड़ थे । पास ही ८० एकड़का एक और टुकड़ा था। उसमें फलोंके पेड़ ज्यादा थे और एक झोंपड़ा भी था । कुछ समय बाद उसे भी खरीद लिया। दोनोंके मिलकर १००० पौंड लगे ।
सेठ पारसी रुस्तमजी मेरे ऐसे तमाम साहसके कामोंमें मेरे साथी होते थे । उन्हें मेरी यह तजवीज पसंद आई। इसलिए उन्होंने अपने एक गोदाम के टीन वगैरा, जो उनके पास पड़े थे, मुफ्त में हमें दे दिये। कितने ही हिंदुस्तानी बढ़ई और राज, जो मेरे साथ लड़ाईमें थे, इसमें मदद देने लगे और कारखाना बनने लगा । एक महीनेमें मकान तैयार हो गया । वह ७५ फीट लंबा और ५० फीट चौड़ा था । वेस्ट वगैरा अपने शरीरको खतरे में डालकर भी बढ़ई यदि साथ रहने लगे ।
फिनिक्स में घास खूब थी और आबादी बिलकुल नहीं थी । इससे सांप आदिका उपद्रव रहता था और खतरा भी था। शुरू में तो हम तंबू तानकर ही रहने लगे ।
मुख्य मकान तैयार होते ही हम लोग एक सप्ताह में बहुतेरा सामान गाड़ियोंपर लादकर फिनिक्स चले गये । डरबन और फिनिक्समें तेरह मीलका फासला था | फिनिक्स स्टेशनसे ढाई मील दूर था । इस स्थान परिवर्तन के कारण सिर्फ एक ही सप्ताह 'इंडियन प्रोपीनियन' को मरक्यूरी प्रेस में छपाता पड़ा था।
मेरे साथ मेरे जो-जो रिश्तेदार वगैरा वहां गये और व्यापार आदि में लग गये थे उन्हें अपने मत में मिलानेका और फिनिक्समें दाखिल करनेका प्रयत्न मैंने शुरू किया। वे सब तो धन जमा करनेकी उमंगसे दक्षिण अफ्रीका श्राये थे ।