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अध्याय १६ : कार्य-पद्धति
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रक्खा था कि जब जरूरत हो तब मुझे बुला लेना; में आनेके लिए तैयार हूं; पर उन्हें भी कष्ट नहीं दिया और न प्रांदोलनको राजनैतिक रूप ही ग्रहण करने दिया । वहांके समाचारोंका विवरण में समय - समयपर मुख्य-मुख्य पत्रोंको भेजता रहता था । राजनैतिक कामोंमें भी जहां राजनीतिकी गुंजाइश न हो वहां राजनैतिक रूप दे देने से " माया मिली न राम " वाली मसल होती और इस तरह विषयोंका स्थानांतर न करनेसे दोनों सुधरते हैं, यह मैंने बहुत बार अनुभव करके देखा था । शुद्ध लोक-सेवामें प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष रूपमें राजनीति समाई ही रहती है, यह बात चंपारनका आंदोलन सिद्ध कर रहा था ।
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कार्य-पद्धति
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मोतीहारी में लोग
चंपारनकी जांच का विवरण देना मानो चंपारनके किसानोंका इतिहास देना है | यह सारा इतिहास इन अध्यायोंमें नहीं दिया जा सकता । फिर चंपारनकी थी, हिंसा और सत्यका एक बड़ा प्रयोग ही था । और जितनी बातोंका संबंध इस प्रयोगसे है वे जैसे-जैसे मुझे सूझती जाती हैं, प्रति सप्ताह देता जाता हूँ ।" अब मूल विषयपर आता हूं । गोरखबाबूके यहां रहकर जांच की जाती तो गोरखबाबूको अपना घर ही खाली करना पड़ता इतने निर्भय नहीं थे कि मांगते ही अपना मकान किरायेपर बृजकिशोरबाबूने एक अच्छा चौगानवाला मकान किरायेपर लोग वहां चले गये । वहांका कामकाज चलानेके लिए धनकी आवश्यकता थी । सार्वजनिक कामके लिए लोगोंसे रुपया मांगनेकी प्रथा आजतक न थी । बृजकिशोरबाबूका यह मंडल मुख्यतः वकील-मंडल था । इसलिए जब कभी प्रावश्यकता होती तो वे या तो अपनी जेबसे रुपया देते या कुछ मित्रोंसे मांग लाते । उनका खयाल यह था कि जो लोग खुद रुपये-पैसे से सुखी हैं वे सर्व-साधारणसे
दे
दें; परंतु चतुर 'लिया और हम
' अधिक विवरण जानने के लिए बाबू राजेंद्रप्रसाद - लिखित 'चम्पारन में महात्मा गांधी' नामक पुस्तक पढ़नी चाहिए । अनु०