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अध्याय १६ : कार्य-पद्धति
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झुंड के झुंड अपनी कहानी लिखानेके लिए आने लगे थे। एक-एक कहानी लिखनेवालेके साथ एक भीड़-सी रहती थी । इससे मकानका चौगान भर जाता था । मुझे दर्शनाभिलाषियोंसे बचाने के लिए साथी लोग बहुत प्रयत्न करते; परंतु वे निष्फल हो जाते । एक निश्चित समय पर दर्शन देने के लिए मुझे बाहर लानेपर ही पिंड छूटता था | कहानी-लेखक हमेशा पांच-सात रहते थे । फिर भी शामतक सबके बयान पूरे न हो पाते थे । यों इतने सब लोगोंके बयानोंकी जरूरत नहीं थी; फिर भी उनके लिख लेने से लोगोंको संतोष हो जाता था और मुझे उनके मनोभावोंका पता लग जाता था ।
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कहानी - लेखकोंको कुछ नियम पालन करने पड़ते थे । वे येथे -- "प्रत्येक किसान से जिरह करनी चाहिए । जिरहमें जो गिर जाय उसका बयान न लिखा जाय । जिसकी बात शुरूसे ही कमजोर पाई जाय वह न लिखी जाय । इन नियमोंके पालनसे यद्यपि कुछ समय अधिक जाता था फिर भी उससे सच्चे और साबित होने लायक बयान ही लिखे जाते थे ।
जब ये बयान लिखे जाते तो खुफिया पुलिस के कोई-न-कोई कर्मचारी वहां मौजूद रहते । इन कर्मचारियोंको हम रोक सकते थे; परंतु हमने शुरूसे यह निश्चय किया था कि उन्हें न रोका जाय । यही नहीं बल्कि उनके प्रति सौजन्य रक्खा जाय और जो खबरें उन्हें दी जा सकती हों दी जायं। जो बयान लिये जाते उनको वे देखते और सुनते थे । इससे लाभ यह हुआ कि लोगों में अधिक निर्भयता श्रा गई। और बयान उनके सामने लिये जानेसे प्रत्युक्तिका भय कम रहता था । इस डरसे कि झूठ बोलेंगे तो पुलिसवाले फंसा देंगे, उन्हें सोच-समझकर बोलना पड़ता था ।
मैं fred मालिकों को चिढ़ाना नहीं चाहता था; बल्कि अपने सौजन्य से उन्हें जीतने का प्रयत्न करता था । इसलिए जिनके बारेमें विशेष शिकायतें होतीं, उन्हें मैं चिट्ठी लिखता और मिलने की कोशिश भी करता । उनके मंडल से भी मैं मिला था और रैय्यतकी शिकायतें उनके सामने पेश की थीं और उनका कहना भी सुन लिया था। उनमें से कितने तो मेरा तिरस्कार करते थे, कितने ही उदासीन थे और बाज-बाज सौजन्य भी दिखाते थे ।