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अध्याय ३६ : प्रायचित्तके रूपमें उपवास
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बालक और बालिकाएं एक साथ रहते और पढ़ते हों, वहां मां-बापकी और शिक्षककी कड़ी जांच हो जाती है। उन्हें बहुत सावधान और जागरूक रहना पड़ता है ।
३६ प्रायश्चितके रूपमें उपवास
इस तरह लड़के-लड़कियोंको सच्चाई और ईमानदारी के साथ परवरिश करने और पढ़ाने लिखाने में कितनी और कैसी कठिनाइयां हैं, इसका अनुभव दिन-दिन बढ़ता गया । शिक्षक और पालककी हैसियतले मुझे उनके हृदयों में प्रवेश करना था । उनके सुख-दुखमें हाथ बंटाना था । उनके जीवनकी गुत्थियां सुलझानी थीं। उनकी चढ़ती जवानीकी तरंगोंको सीधे रास्ते ले जाना था ।
कितने ही कैदियोंके छूट जानेके बाद टॉल्स्टाय प्राश्रम में थोड़े ही लोग रह गये | ये खासकरके फिनिक्स - वासी थे । इसलिए मैं श्राश्रमको फिनिक्स ले गया | फिनिक्समें मेरी कड़ी परीक्षा हुई । इन बचे हुए आश्रम - वासियों को टॉल्स्टाय - श्राश्रम से फिनिक्स पहुंचाकर में जोहान्सबर्ग गया। थोड़े ही दिन जोहान्सवर्ग रहा होऊंगा कि मुझे दो व्यक्तियोंके भयंकर पतनके समाचार मिले | सत्याग्रह जैसे महान् संग्राम में यदि कहीं भी असफलता जैसा कुछ दिखाई देता तो 1. उससे मेरे दिलको चोट नहीं पहुंचती थी, परंतु इस घटनाने तो मुझपर वज्र प्रहार ही कर दिया ! मेरे दिलमें घाव हो गया ! उसी दिन मैं फिनिक्स रवाना हो गया । मि० केलनवेकने मेरे साथ थाने की जिद पकड़ी। वह मेरी दयनीय स्थिति को समझ गये थे; उन्होंने साफ इन्कार कर दिया कि मैं आपको अकेला नहीं जाने दूंगा । इस पतनकी खबर मुझे उन्हींके द्वारा मिली थी ।
रास्ते में ही मैंने सोच लिया, ग्रथवा यों कहूं कि मैंने ऐसा मान लिया कि इस अवस्था मेरा धर्म क्या है ? मेरे मनने कहा कि जो लोग हमारी रक्षामें हैं उनके पतन के लिए पालक या शिक्षक किसी-न-किसी अंशमें जरूर जिम्मेदार हैं यर इस दुर्घटना के संबंध में तो मुझे अपनी जिम्मेदारी साफ-साफ दिखाई दी । मेरी पत्नीने मुझे पहले ही चेताया था; पर में स्वभावतः विश्वासशील हूं, इससे मैंने उसकी चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया था। फिर मुझे यह भी प्रतीत हुआ कि